Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
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इसके सेवनसे समस्त प्रकारके कुष्ठ, और तदेवकुसुमचन्दनकस्तूरीकुङ्कुमैर्युक्तम् । अण नष्ट होते हैं । यह रस फिरङ्ग रोग (उपदंश) खादन्हरति फिरङ्गं व्याधि सोपद्रवं सपदि ।। में अत्यन्त उपयोगी है।
विन्दति वह्वेर्दीप्तिं पुष्टि वीर्य बलं विपुलम् | इसके सेवनसे शरीर काश्चनसदृश तेजवान
रमयति रमणीशतकं रसकर्पूरस्य सेवकः सहोता और अग्नि दीप्त होती है ।
ततम् ॥
शुद्ध पारद, गेरु मिट्टी, ईटका चूर्ण, खिड़िया (पथ्य-लवण, खटाई आदि रहित बेसन
मिट्टी, फिटकरा, सेंधा नमक, बल्मीक मृत्तिका को रोटी और घी खाना तथा धूप परिश्रम ओदिसे
(बामीकी मिट्टी), खारी नोन और बरतन रंगनेकी बचना चाहिये।
मिट्टी समान भाग ले कर पारके अतिरिक्त अन्य मात्राका निर्णय रोगीकी अवस्था देख कर | समस्त ओषधियांको कूट कर कपड़ेसे छोन लें करना चाहिये ।)
और फिर उस चूर्णमें पारद मिलाकर १ पहर तक (६०५२) रसकर्पूरविधिः (३) खरल करें। ( भा. प्र.प्र. खं.)
___अब इस चूर्णको एक कपडमिट्टी की हुई
हाण्डीमें भर कर उसके ऊपर उसीके बराबर दूसरी शुद्धसूतसमं कुर्यात्मत्येकं गैरिकं सुधीः ।
हाण्डी उलटी करके ढक दें और दोनोंके जोड़को इष्टिका खटिकां तद्वत्स्फटिकां सिन्धुजन्म च ।।
कपड़ेमिट्टीसे बन्द कर दें । एककपड़मिट्टी वल्मीकं क्षारलवणं भाण्डरअकमृत्तिकाम् ।
सूख जाने पर दूसरी बार करें। इसी प्रकार ३ सर्वाण्येतानि सञ्चूर्ण्य वाससा चापि शोधयेत् ॥
" कपडमिट्टी लगा कर दोनों के जोड़को अच्छी तरह एभिश्चूगैर्युतं मूतं यावद्यामं विमर्दयेत् । बन्द करें। तच्चूर्णसहितं सूतं स्थालीमध्ये परिक्षिपेत ॥ तस्याः स्थाल्या मुखे स्थालीमपरां धारयेत्समाम्
तदनन्तर कपड़मिट्टीको अच्छी तरह सुखा कर सवस्त्रकुट्टितमृदा मुद्रयेदनयोर्मुखम् ॥
| यन्त्रको चूल्हे पर चढ़ा दें और निरन्तर चार दिन संशोष्यमुद्रयेदभूयो भूयः संशोष्य मद्रयेत । | तक पकाव । सम्यग्विशोष्य मुदां तां स्थाली चुल्ल्यां वि. | इसके पश्चात् अग्नि देनी बन्द कर दें और
धारयेत् ।। २४ घण्टे तक यन्त्रको अंगारांपर ही रहने दें। अनि निरन्तरं दद्यायावदिनचतुष्टयम् । तत्पश्चात् हाण्डी के स्वांगशीतल होने पर, अङ्गारोपरि तद्यन्त्रं रक्षेद्यत्नादहनिशम् ॥ जोड़को सावधानो पूर्वक खोल कर ऊपरकी हाण्डीमें शनैरुद्वाटयेद्यन्त्रमूर्ध्वस्थालोगतं रसम् । लगे हुवे कपूर के सदृश रसको निकाल लें । इसीका कर्पूरवत्सुविमलं गृह्णीयाद्गुणवत्तरम् ॥ | नाम रसकर्पूर है।
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