Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
४०१
अत्र पारदस्य नैसर्गिकदोपत्रयशोधनश्चावश्यक रस पर्पटिका में वह गन्धक प्रयुक्त करना कार्यम् । यदुक्तं
चाहिये कि जो शुकपुच्छ के समान तथा कान्ति वाला, मलशिखिविषनामानो रसस्य नैसर्गिका दोषाः। मक्खन के समान प्रभा वाला, चिकना, कठिन तथा मृच्छी मलेन कुरुते शिखिना दाई विषेग । स्निग्ध हो । इस प्रकारके गन्धक के चावल के समान
हिकाच ॥ छोटे २ खण्ड करके भांगरे के रससे सात भावना गृहकन्या हरति मलं त्रिफला वह्नि चित्रकथ
दे कर श्लक्ष्ण चूर्ण कर धूप में सुखा लें। तत्पश्चात् विषम् ।
गन्धकचूर्ण को लोहे की करछी में रखकर तस्मादेभिर्धारान् सामूर्छयेत् सप्त सप्तैः ॥ इति
निर्धूम बेरीकी लकड़ी के अङ्गारों पर पिघलावें ।
पिघल जाने पर पात्र में स्थित भृङ्गराज के रस में गृहकन्या घृतकुमारी । तस्या दलरसेन |
। तस्या दलरसन | डाल दें। तब गन्धक पुनः कठिन हो जायगी। खल्लनम् । त्रिफलायाश्चूर्णेन खलनं, चित्रकस्य
इसे धूप में सुखाकर बारीक चूर्ण करें। पत्ररसेन मूर्छनम् । तदेव नैसर्गिकदोषापहा- |
इस प्रकार शोधित पारद तथा शोधित गन्धक रानन्तरं जयन्त्यादिद्रव्यच तुष्टयरसेन मूर्छन
को समपरिमाण में लेकर अच्छी प्रकार तबतक मधिगन्तव्यम् ॥
| मर्दन करें जबतक पारद अदृश्य तथा निश्चन्द्र न श्री व्याडिमुनि तथा धन्वन्तरि को प्रगाम हो जाय । इस कजली को लोहे की करछी में करके रसगन्धकपर्पटिका की निर्माग विधि को रख निधूम बेरो को लकड़ी के अङ्गारों पर पिघला कहता हूं।
कर तैल के समान कर लें। पश्चात् गायके गोबर पर रसर्पटिका को तैयार करने से पूर्व पारद के एक नरम केले का पत्ता बिछादें तथा एक दूसरे तीन नैसर्गिक दोषों अर्थात् मलदोष, वह्रिदोष पत्तेमें गोबर को रख उस पते को पोटली बनावें । तथा विदोष का निवारण कर लेना चाहिये क्यों | तदनन्तर बिछे हुए पत्र पर उसे थोड़ा २ डालें और कि इन दोषोंसे क्रमशः मूर्छा, दाह तथा हिक्का | पोटली से दबाते जावें । करछो में बचे हुए कठिन आदि उपद्रव होने का भय रहता है । अतः घोकार भाग को न ग्रहण करना चाहेये । इस प्रकार यह के रस से मलदोर के निवारण के लिये, त्रिफला- रस पर्पटिका तय्यार होता है । चूर्ण से अग्निदोष के निवारण के लिये एवं चित्रक | मयूरपुच्छ की चन्द्रिका के समान यदि पर्पटी के पतों के रस से विषदोष के निवारण के लिये हो तो समझना चाहिये कि पर्पटी सिद्ध हो सात २ बार मूर्छन करें । पश्चात् यथाक्रम पत्थर के बर्तन में जयन्तीपत्र, एरण्डपत्र, अदरख तथा | एक पत्थर के पात्र में अच्छी प्रकार पीस मकोय के पत्तों के रस में पारद को मग्न कर मर्दन कर रखना तथा भरणी नक्षत्र में पर्पटी का प्रयोग करें और शुष्क कर लें।
करना चाहिये।
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