Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसमकरणम् ] चतुर्थों भागः
३९२ पलाई जीरकं चैव खदिरं माषमात्रकम् । नोट-४ रत्ती मात्रा अधिक है अतः मात्राका जलेन पेषयित्वा तु कवलं कारयेद्भिषक् ॥ | निर्णय रोगीकी अवस्थानुसार करना चाहिये । तेनैवोपशमं याति मुखपाकं सुदारुणम् ॥ (६०५०) रसकर्पूरविधिः (१) गेहूंके आटेको पानीसे सान कर उसकी एक
( यो. त. । त. १७) छोटीसी कूपिका बना लें अर्थात् १ गोली बना कर उसमें गढ़ा कर लें । तदनन्तर इस गढ़ेमें ४
| शुद्धसूतसमं तुत्थं घनक्याथेन सप्तधा। रत्ती शुद्ध रसकपूर रख कर उस कूपिकाकी गोली
| भावयित्वा न्यसेत्कृप्यां मुखे मुद्रां च कारयेत्।।
वालुकायन्त्रमध्ये तु यामार्क ज्यालयेदधः । इस प्रकार बना लें कि दवा उससे बाहर न निकले । तत्पश्चात् उस गोलीको लौंगके बारीक
रसकर्पूर विख्यातः खोटबद्धो रसः ॥ चूर्णमें रौंद लें कि जिससे उसके चारों ओर चूर्ण
शुद्ध पारद और शुद्ध तूतिया समान भाग लग जाए।
ले कर दोनोंको खरल करके नागरमोथेके . काथकी ... अब इस गोलीको पानीके साथ इस प्रकार
सात भावना दें और फिर उसे कपरमिट्टी की हुई निगल जाएं कि दांतोंको न लगे; और गोली
आतशी शीशीमें भर कर उसके मुख पर डाट लगा खानेके पश्चात् पान चबा लें ।
कर उसे गुड़ चूनेसे मज़बूत कर दें । तदनन्तर
| इस शीशीको बालुका यन्त्र में रख कर १२ पहर .. अपथ्य---शाक, अम्ल, लवण, परिश्रम, धूप, |
की अग्नि दें। जब शीशी स्वांग शीतल हो मार्ग. चलना और विशेषतः स्त्री-सहवासका
जाए तो उसमेंसे रस कपूर को निकाल कर सुरस्याग करें।
क्षित रक्खें। (पथ्य--बेसनको रोटी और घी । )
(६०५१) रसकर्पूरविधिः (२) - इस प्रकार रसकपूर खानेसे मुखशोथ उत्पन्न
(यो. त. । त. १७) नहीं होता और उपदंश रोग समूल नष्ट हो जाता है।
यन्त्रे मुसिद्धे डमरूसमाख्ये यदि किसी कारणवश मुख-पाक हो भी
- निधाय मूतस्य पलानि पश्च । जाए तो पञ्चवल्कल ( पीपल, पिलखन, बड़, गूलर
वल्मीकमृत्स्नाखटिकेष्टिकानां और बेत ) की छालके काथके कुल्ले करने चाहिये।
___ सगैरिकाणां तुवरीयुतानाम् ॥ तथा २॥ तोला जीरा और २। माशा कत्था, ले ससैन्धवानां समभागिकानां कर दोनोंको पानीमें पीस कर मुखमें रखना। | चूर्णाढकं चोपरितो निदध्याद् । चाहिये । इससे भयंकर मुख शोथ भी नष्ट हो | अम्लेन दध्ना महिषीभवेन जाता है।
पिष्टं रसोनस्य शरावमेकम् ॥
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