Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अच्छी तरह बन्द कर दें । तदनन्तर उस सम्पुटको मिट्टी की मूषामें बन्द करके रातको गजपुट में रख
कर अग्नि लगा दें और प्रात:काल निकाल कर खरल
करके सुरक्षित रक्खें ।
न करें ।)
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
( ताम्रका जो भाग कच्चा रहा हो उसे ग्रहण
[ मकारादि
इसे सेठ चूर्ण और घीके साथ खिलाने से सन्निपात नष्ट होता है ।
मात्रा -- १ रत्ती ।
अनुपान - - औषध खानेके पश्चात् १० तोले गर्म जल पियें ।
पथ्य - दही भात | ध्यास में शीतल जल दें । इसके सेवनसे कृश मनुष्य स्थूल हो जाते हैं ।
इति मकारादिरसप्रकरणम्
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अथ मकारादिकल्पप्रकरणम्
(५६८३) मृणालकल्पः
यावज्जीवं सिता न स्युः शुक्रवृद्धिः परा भवेत् लाभप्रतिमं भूयाद्वपुः कालवशं न च ॥
( र. चि. म. । स्त. ९)
भवन्ति कालनामानि मृणालानि समानयेत् । गच्छेन्न जायते रोगास्तस्य देहे कदा च न । राजयोग्यत्ययं कल्पो विशेषात्पूज्य उत्तमः ॥
तद्रसन्तिलचूर्णेन समं कुर्याद्रसायनी ॥ सर्पिस्तेन समं दद्यान्मधुखण्डं तथैव च । आय से भाजने सर्वं विनिक्षिप्य निरुध्यते ॥ तुषं तस्याऽथ भाण्डस्य स्थापयेद्वह्निसन्निधौ । एकत्रिंशदिने ती पश्चात्तद्भक्षयेत्सदा ॥ योग्यमात्रां गृहीत्वाऽथ तस्योपरि च शर्कराः । कोशकारांश्च पश्चाद्धि गृह्णीयात्पथ्यभुग्ररः ॥ अम्लं च वर्जयेन्नित्यं नित्यं क्षारं च वर्जयेत् । क्रोधं च मैथुनं कल्पसेवी नित्यं विवर्जयेत् ॥ शीतस्थानं समाश्रित्य तिष्ठत्यविरतं बुधः । मासत्रयेप्यतिक्रान्ते केशाः कालाः सुकोमलाः।। शरीरं दृढवच्च स्याज्जायते सुमनोहरम् । अतिगौर महोत्साही तस्य केशाः कदाचन ॥ | चाहिये । तथा पथ्य पूर्वक रहना चाहिये ।
काल नामक कमलनाल (मृणाल ) को कूट कर रस निकालें और उसमें तिल चूर्ण, घी, शहद और खांड; प्रत्येक उस रसके बराबर मिलाकर सबको लोह पात्र में भर कर उसका मुख बन्द कर दें और इस पात्रको तुषके ढेर में ऐसे स्थान पर दबा दें जिसके पास नित्य अग्नि जलती हो ।
इसे यथोचित मात्रानुसार खा कर ऊपर से 'खांड और कोशकार ( ईख विशेष - कुशिया) खानी
जब २१ दिन बीत जाएं तो औषधको सेवन योग्य समझें ।
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