Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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चतुर्थी भागः
कषायप्रकरणम् ]
इसमें सांठ का चूर्ण मिला कर पीने से अनेकविध सन्धि पीड़ा युक्त भयंकर आमवात नष्ट होता है।
( प्रत्येक वस्तु ६ माशे । पाकार्थ जल २८ तोले । शेष काथ ७ तोले । सांठका चूर्ण १-१॥ माशा । )
(५८७४) रास्नादिक्वाथः (८) (ग. नि. । ज्वरा. १; यो. र. । सन्निपात ; वृ. न. र. । सन्निपाता. ) रास्नाशुण्ठीगुडूचीसहचरजलदाभीरुपध्यासुराहैस्तिक्ताकर्चूरवासानिलरिपुसहितैः पञ्चमूलीद्वयेन एभिर्द्रव्यैः कषायस्त्वरितमपहरेत्पीतमात्रः प्रभाते मन्यास्तम्भान्त्रवृद्धिं ज्वरपिटककटीसन्धिसर्वा
पीडाम् ॥
रास्ना, साठ, गिलोय, पियाबासा, नागरमोथा, शतावर, हर्र, देवदारु, कुटकी, कचूर, बासा, अरण्डमूल और दशमूलकी प्रत्येक वस्तु; ये सब चीजें समान भाग लेकर सबको एकत्र मिला कर अधकुटा कर लें 1
( यह चूर्ण २॥ तोले । पाकार्थ जल २० तोले । शेष काथ ५ तोले । )
इसे प्रातः काल सेवन करने से मन्यास्तम्भ, अन्त्रवृद्धि, ज्वर, कटी पीड़ा, सन्धि पीड़ा और सर्वांग पीड़ाका नाश होता है ।
(५८७५) रास्नादिक्वाथः (९) ( वृ. नि. र. । सन्निपात. ) रास्नाश्वगन्धाघनकण्टकारी भाङ्गवचा पौष्कररोहिणीनाम् ।
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क्वाथः कृतः शृङ्ग्यभयानां पीतो जयेत्कर्णकसन्निपातम् ॥
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रास्ना, असगन्ध, नागरमोथा, कटेली, भरंगी, बच, पोखरमूल, कुटकी, काकड़ासिंगी और हरे समान भाग ले कर काथ बनावें ।
यह काथ कर्णक सन्निपातको नष्ट करता है । ( प्रत्येक ओषधि ३ माशे । पाकार्थ जल २० तोले । शेष काथ ५ तोले । )
(५८७६) रास्नादिक्वाथः (१०) ( यो. र. । कर्णरोगा . ) रास्ना बृहतीपथ्यान्योष कटुकाघनपुष्कराक्षैश्च । शृङ्गीधाराभार्गी क्वाथः कर्णकरुजं हरेत्पानात्।।
रास्ना, कटेली, हर्र, सोंठ, मिर्च, पीपल, कुटकी, नागरमोथा, पोखरमूल, काकड़ासिंगी, गिलोय और भरंगी समान भाग ले कर क्वाथ बनावें |
यह काथ कर्णक सन्निपातको नष्ट करता है । प्रत्येक वस्तु ३ माशे । पाकार्थ जल २४ तोले । शेष काथ ६ तोले
(५८७७) रास्नादिक्वाथः (११) ( यो. र. । सन्निपात; वृ. नि. र. । सन्निपात. ) रास्नागुचीद्धिदारु
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सुराह विश्वात्रिफलावरीभिः । क्वाथं पिबेद्गुग्गुलुसम्प्रयुक्तं समस्तसन्धिग्रहसन्निपाते ॥