Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[रकारादि (५९०८) रसायनचूर्णम् । नमक लेकर सबको एकत्र मिलाकर किसी पात्रमें
(रा. मा. । रसा. वाजी.) . बन्द करके रख दें एवं आठवें दिन निकालकर यः कुष्ठचूर्ण रजनीविरामे
धूपमें सुखा कर चूर्ण बना लें। __ मध्वाज्यसम्मिश्रितमत्ति नित्यम् । | इस चूर्णमें ल्हसनकी उग्र गन्ध नहीं रहती स मत्तमातङ्गबलः सुगन्धि
और यह समस्त वातज रोगों को नष्ट करता है । - ग्मिी चिरायुश्च भवेन्मनुष्यः ।। इसे अग्नि बलोचित मात्रानुसार १ मास तक
प्रातः काल कूठके चूर्णको शहद और धीमें सेवन करना चाहिये। मिला कॅर सेवन करनेसे शरीर अत्यन्त बलवान पथ्यापथ्य--इस प्रयोगके सेवनकालमें स्निऔर सुगन्धित हो जाता है।
ग्धाहार करना और अजीर्ण न होने देना चाहिये; इसके सेवनसे वाचा शक्ति और आयु भी
| तथा धूप, क्रोध, अधिक जल पान, गुड़ और दूधसे बढ़ती है।
परहेज़ करना चाहिये। रसेन्द्रचूर्णम्
(५.९१०) रामठादिचूर्णम् ( भै. र. । ग्रहण्य.)
(वृ. नि. र. । संग्रहणी.) रस प्रकरणमें देखिये ।
रामठातिविषापथ्यावचेन्द्रयवचूर्णकम् ।
वारिपीतं निहन्त्येव ग्रहणीं वातसम्भवाम् ।। 4 (५९०९) रसोनपञ्चकः
भुनी हुई हींग, अतीस, हर्र, वच और इन्द्रजौ ... (यो. त. । त. ४०)
समान भाग लेकर चूर्ण बनावें । कन्दः सार्षपतैलं च लशुनं शृङ्गवेरकम् ।। - इसे पानीके साथ पीनेसे वातज संग्रहणी नष्ट सर्वाष्टमांश सिन्धूत्थं सन्धितं दिनसप्तकम् ।। होती है । सञ्चूयं धर्ममध्ये तु प्रातः खादेद्यथावलम् ।
( मात्रा-५ रत्तीसे १ माशा तक ।) एष निर्गन्धतामेत्य सर्ववातामयाञ्जयेत् ॥ स्निग्धभोजी मासमात्र सेवनाद्वातजिद्भवेत् ।
(५९११) रामठादियोगः .: अजीर्णमातपं रोपमतिनीरं पयो गुडम् ॥
(र. च.; यो. र. । विसर्प. ) रसोनमश्नन्पुरुषस्त्यजेदेतन्निरन्तरम् ॥ रामठं टङ्कणं क्षारं प्रत्येकं शाणसम्मितम् ।
शलगम ( या प्याज ), सरसेका तेल, छिला चूर्णयित्वा सप्तदिनं खादेत्सन्ध्याद्वये नरः ॥ और अङ्कुरादि निकाला हुवा ल्हसन तथा सेठका भुनी हुई हींग, सुहागेकी खील, और जवाखार चूर्ण १-१ भाग और सबका आठवां भाग सेंधा- समान भाग लेकर एकत्र मिला कर चूर्ण बनावें ।
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