Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कपायप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
३२५
यह काथ वातज रोग अविभेदक, आब्य- ऊरुस्तम्भामवातं जठरवात, अर्दित, खञ्जता, नेत्र रोग, शिरशूल, ज्वर, रुजकटीपृष्ठशूलान्ऋद्धिम् । अपस्मार, और मनोभ्रंश को नष्ट करता है। वातामश्वासशोथान्कफपवन(५८६५) रास्नादिकल्कः (१)
रुजादण्डकाश्चाशु हन्यात् ॥ (यो. र. । विषम ज्वरो.)
रास्ना, श्यामाक (क्षुद्र धान्य), हर्र, काली
मिर्च, सौंफ, आमला, बायबिडंग, असगन्ध, जवासा, रास्नानागरकृष्णाणां कल्कमुष्णाम्बुना पिबेत् ।
गिलोय, अजमोद, सुमुख( तुलसी भेद ), अतीस, श्वासकासाग्निमान्यं च शीतज्वरहरं भवेत् ॥ |
विधारा, कटेली, सेांठ, कुटकी, अजवायन, पिया___ रास्ना, सांठ और पीपलके कल्कको गरम
बांसा, चव, अरण्ड मूल, दारु हल्दी और असना। पानीके साथ पीनेसे श्वास, खांसी, अग्निमांद्य और सब समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर ज्वर नष्ट होता है।
अधकुटा कर लें। ( प्रत्येक ओषधि १॥ माशा)
(इसमेंसे २॥ तोले चूर्णको २० तोले (५८६६) रास्नादिकल्कः (२)
पानीमें पका और ५ तोले शेष रहने पर
छान लें।) ( वृ. नि. र. । विषम ज्वर )
यह काथ उरुस्तम्भ, आमवात, जठररुजा, रास्नानागरकृष्णाणां कल्कमुष्णाम्बुना पिबेत् ।
२ कटी शूल, पृष्ठ शूल, अन्त्रवृद्धि, श्वास, शोथ, श्वासकासानिमान्यं च ज्वरं शीतं विनाशयेत् ।। और कफ वातज रोगोंको नष्ट करता है । . रास्ना, सोंठ और पीपलके कल्कको उष्ण
(५८६८) रास्नादिक्वाथः (२) जलके साथ पीनेसे श्वास, खांसी, अग्निमांध और शीत ज्वर नष्ट होता है।
(व. से.; वृ. मा.; च. द. । वृद्धय. ३९; वृ.
नि. र. । अण्डवृद्धय.) (५८६७) रास्नादिक्वाथः (१)
| रास्नायष्ट्यामृतैरण्डबलागोक्षुरसाधितः । (व. से. । आमा. )
क्वाथोऽन्त्रवृद्धिं हन्त्याशु रुबुतैलेन मिश्रितः ॥ रास्नाश्यामाकपथ्या मरिचमिसि
रास्ना, मुलैठी, गिलोय, अरण्डमूल, खरैटी शिवावेल्लकञ्चाश्वगन्धा ।
और गोखरु । ये सब चीजें समान भाग ले यासं छिन्नाजमोदासुमुखमति- कर सबको एकत्र मिला कर अधकुटा कर लें। विषा वृद्धदारुबृहत्यौ ॥
(२॥ तोले यह चूर्ण ले कर उसे २० तोले शुण्ठी तिक्ता यवानी सहचर- पानीमें पकावें और ५ तोले शेष रहने पर
चक्रिण्डदाळजकर्णा। छोन लें।)
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