Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www. kobatirth.org
भारत - भैषज्य रत्नाकरः
३१४
इन्ति कासं स्वराघातं क्षयकासं क्षतक्षयम् । वर्णानि पुष्टीनां साधनो दोषनाशनः ॥
रास्ना, तालीसपत्र, कपूर, मण्डूकपर्णी, मनसिल, सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला, बायबिडंग, नागरमोथा और चीतामूल; इनका चूर्ण १ - १ भाग तथा लोह भस्म सबके बराबर लेकर सबको एकत्र खरल करके रक्खें ।
इसके सेवनसे वैथोंसे व्यक्त और सर्व उपद्रव युक्त क्षय भी नष्ट हो जाता है ।
इसके अतिरिक्त यह रस खांसी, स्वरभंग, क्षय कास और क्षतक्षयको भी नष्ट करता है । तथा इसके सेवन से बल, वर्ण, अग्नि और पुष्टिकी वृद्धि होती है।
( मात्रा - २ रत्ती ।
अनुपान - मधु । )
(५८३०) यक्ष्मारिलौहम् (भै. र. । राजयक्ष्मा. ) मधुताप्यावडङ्गाश्मजतु लोहघृताभयाः । नन्ति यक्ष्माणमत्युग्रं सेव्यमाना हिताशिना ||
स्वर्ण माक्षिक भस्म, बायबिडंगका चूर्ण, शिलाजीत, लोह भस्म और हर्रका चूर्ण तथा शहद और घी समान भाग लेकर सबको एकत्र घोट कर सेवन करनेसे प्रबल यक्ष्माका नाश हो जाता है ।
(५८३१) यवान्यादियोगः ( रसे. चि. म. । अ. ९.) यवानी गुडसम्मिश्रो सूतभस्म द्विवल्लकम् । शीतपित्तं निहन्त्याशु कटुतैलविलेपनम् ॥
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
[ यकारादि
१ भाग पारद भस्म ( अभावे रस सिन्दूर ) में १ - १ भाग अजवायनका चूर्ण और गुड़ मिलाकर खरल करें ।
इसके सेवन से शीतपित्त ( पित्ती उछलना ) रोग नष्ट होता है ।
मात्रा - ६ रत्ती |
शीतपित्त में शरीर पर सरसों के तेलकी मालिश भी करनी चाहिये ।
(५८३२) यशदमारणम् (१) ( र. रा. सु. )
जसदस्य चतुर्थांशं पारदं गन्धकं प्रिये । मर्दयेत्खल्वके सम्यकू कन्या निम्बुरसैः पृथक् ॥ लेपयेत्तेन पत्राणि गजाहे पाचयेत्पुटे । एकमेव पुटेनव भस्मसाज्जसदं भवेत् ॥
अयं तु जस सर्वरोगान् व्यपोहति । जसदं तुवरं तिक्तं शीतलं कफपित्तहृत् ॥ चक्षुष्यं परमं मेहं पाण्डु श्वासं च नाशयेद् ।
-->>K%20
पुराणे गोघृते नैत्र्यं ताम्बूलेन प्रमेहजित् ॥ अग्निमन्येनाग्निकरं त्रिसुगन्धैस्त्रिदोषनुत् । सतन्दुलहिमैर्हन्ति खर्जूरैर्मायुर्जं ज्वरम् ॥ वानिका लवङ्गाभ्यां युतं शीतज्वरं जयेत् । खर्जूरतण्डुलहिमै रक्तातीसारनाशकृत् ॥ शर्कराजा जिसंयुक्तमतिसारं वमिं जयेत् ॥
For Private And Personal Use Only
१ - १ भाग पारद और गन्धककी की करके उसे १-१ दिन घृत कुमारी और नीबूके