Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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मिश्रप्रकरणम्
चतुर्थों भागः
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लगानेसे पिल्ल, आंखकी खुजली, तिमिर, रतौंधा, | रक्खेंगे और उसे राजा तथा चोरादि भी हानि न काच, अर्बुद और पटलादि नेत्र रोग नष्ट होते हैं। पहुंचाएंगे, न उस पर कोई शस्त्र प्रहार करेगा और ___ यह अगद विषम ज्वर, अजीर्ण, दाद, | न अग्नि लगायगा । ) खुजली, विसूचिका, पामा, कुष्ठ, किटिभ, श्वेत जिसके पास यह अगद होगा उसे धनकी कुष्ठ, विचर्चिका, चूहेका विष, मकड़ीका विष, कमी न रहेगी। समस्त प्रकारके सोका विष, मूलविष और कन्द
इसे तैयार करते समय " मम माता........ विष इत्यादिको शीघ्र ही नष्ट कर देता है। स्वाहा” मन्त्रका जाप करते रहना चाहिये ।
इस अगदका शरीर पर लेप करके सर्पको पकड़ लिया जाय या विष भक्षण कर लिया जाय
___ (५६९७) महाद्रावकम् (१) तो भी प्राण हानि नही हो सकती।
(भै. र. । प्लीह. ; धन्व. । उदर.) ____ यदि विषके प्रभावसे मृत्प्रायः व्यक्ति पर भी | यवक्षारस्य भागौ द्वौ स्फटिक रिस्त्रयो मताः। इसे प्रयुक्त किया जाय तो वह स्वस्थ हो जाता है। एकीकृत्य प्रपिष्यापि मूत्रैर्वत्सतरीभवैः ॥
आध्मान रोगमें गुदो पर और मूढगर्भ में योनिपर | शुष्कं कृत्वा क्षिपेत्पात्रे शेशके वस्त्रले पिते । इसका लेप करना चाहिये । मूर्छा और शिर | अन्यशीशकपात्रेण मुखं सम्मेलयेद् बुधः ॥ पीड़ामें शिर पर इसका लेप करना अत्यन्त पात्रस्याधःप्रदीप्ताग्नेः सौपधान्नलिकान्वितात । लाभदायक है।
पात्रेऽन्यस्मिन् रसो याति बाष्परूपेण सञ्चितः।। __ भेरी, मृदङ्ग और ढोल आदि बाजों पर ततो रसं विनिष्कृष्य स्थापयेत्स्निग्धभाजने । इसका लेप करके उन्हें सर्पविष-ग्रस्त मनुष्य के ! लवङ्गन वटी कुर्यादथवा मृतताम्रकैः ॥ सामने बजाने और छत्र, ध्वजा तथा पताका |
। प्लीहादिस्थूलरोगेषु दापयेद्रक्तिकां भिषक् । पर लेप करके उसे दिखानेसे विष नष्ट हो
| दूरीकरोति रोगश्च महाद्रावकसंज्ञकः ॥ जाता है।
वित्रे च दद्ररोगे च प्रलेपं द्रावकस्य च । ___ जिस स्थानमें यह अगद रहता है वहां |
वह्निवज्ज्वलनं तस्य दधि दत्त्वा प्रलापयेत् ॥ बालग्रह, राक्षस कार्मण, बेताल और विरोधियों
२ भाग जवाखार और ३ भाग फटकीको द्वारा प्रयुक्त अथर्व वेदोक्त मन्त्र किसी प्रकारकी
___*मन्त्र जापको मिथ्यावाद न समझना हानि नहीं कर सकते।
| चाहिये । मन्त्र, हिप्नोटिज्मका एक प्रधान अंग है। ___इसकी विद्यमानतामें अग्नि शस्त्र, राजा और इसीको “ सजेशन " कहते हैं। यदि सजेशन चोरादि भी हानि नहीं पहुंचा सकते । ( जिसके ! या मन्त्रका प्रयोग सन्देह रहित विश्वासके साथ पास यह औषध होगी उससे सभी लोग अपने विधिवत किया जाय तो अवश्य फलदायक स्वार्थ वश या उसकी महत्ताके विचारसे मित्र भाव । होता है ।
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