Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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कषायप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
२८३
(५७२७) यवान्यादिक्वाथः
जवासा, सिरसकी छाल, अर्जुनकी छाल, खैर( भा. प्र. ; वृ. नि. र. । कफ ज्वर.) सार, असना वृक्षका सार, नीमके पत्ते, पलाश यवानी पिप्पली वासा तथा खाखसवल्कलम् । (ढाक) की छाल, आमला और चूहाकन्नो समान एषां क्याथं पिबेत्कासे श्वासे च कफजे ज्वरे ॥ भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
अजवायन, पीपल, बासा और पोस्तका डोढा | इस क्वाथसे उपदंशके बण धोने चाहिये। समान भाग लेकर क्वाथ बनावें ।
इसी काथसे तैल पकाकर उपदंशके ब्रों पर ___ यह क्वाथ खांसी, श्वास और कफज ज्वरको लगाना चाहिये । नष्ट करता है।
(प्रत्येक ओषधि २ तोले । पाकार्थ जल ( अजवायन आदि प्रत्येक वस्तु १। तोला । १४४ तोले । शेष काथ ३६ तोले । तैल पाकार्थ पानी ४० तोले । शेष क्वाथ १० तोले ।) यही काथ ४ सेर; तिल तेल १ सेर ।)
(५७२८) यवान्यादिदीपनकषायः (५७३०) यवासादिक्वाथः (वृ; नि. र. ; यो. र. । आमातिसार.)
(वैद्यामृत.) यवानीनागरोशीरधानिकातिविषाघनैः ।
वातज्वरं हन्ति यवासविश्वा बालबिल्वद्विपर्णीभिर्दीपनं पाचनं भवेत् ॥
मुस्ता गुडूची जनितः कषायः । अजवायन, सोंठ, खस, धनिया, अतीस, जवासा, सोंठ, नागरमोथा और गिलोय समान नागरमोथा, कच्चे बेलकी गिरी, शालपर्णी और | भाग लेकर क्वाथ बनावें । पृष्ठपर्णी समान भाग ले कर क्वाथ बनावें ।
यह काथ वात ज्वरको नष्ट करता है। यह काथ आमको पचाता और अग्निको दीप्त (प्रत्येक ओषधि ११ तोला । पाकार्थ जल करता है।
४० तोले । शेष काथ १० तोले । ) (प्रत्येक ओषधि आधा तोला । पानी आधा (५७३१) यष्टयादिक्वाथः (१) सेर । शेष काथ १० तोले ।)
( यो. र.; वृ. नि. र. । शीतपित्त.) (५७२९) यवासकादिप्रक्षालनम् | यष्टी मधृकपुष्पं च सरास्नां चन्दनद्वयम् । (ग. नि. । उपदंश.)
निर्गुण्डी सकणाक्वाथं शीतपित्तहरं पिबेत् ।। यवासकं शिरीषं च ककुभं खदिरासनौ। मुलैठी, महुवेके फूल, रास्ना, सफेद चन्दन, पिचुमन्दपलाशौ च धात्री सोन्दुरकर्णिका ॥ लाल चन्दन और संभालु समान भाग लेकर काथ एसानि समभागानि कषायमुपसाधयेत् । . बनावें । तेन प्रक्षालनं कुर्यादुपदंशेषु बुद्धिमान् ॥ इसमें पीपलका चूर्ण मिला कर पीनेसे शीतएतेनैव कषायेण व्रणतैलं विपाचयेत् ॥ पित्त ( पित्ती उछलना रोग ) नष्ट होता है।
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