Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
रसप्रकरणम् ] चतुर्थो भागः
२२१ २५-२॥ तोले लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली इसके सेवनसे धातुगत ज्वर, चित्तभ्रम सन्निबनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिला- पात, पित्तज और रक्तज रोग ( अथवा रक्तपित्त ), कर सबको गूमा और पानके रसकी पृथक् पृथक् | रक्तातिसार, ग्रहणी और रक्तार्शका नाश होता है । सात सात भावना दें और अन्तमें जब थोड़ा द्रव मात्रा-२ रत्ती। शेष रह जाए तो ५ तोले काली मिर्चका चूर्ण | ___अनुपान-मिश्रीमें मिलाकर पानीसे खाना मिलाकर खरल करें।
चाहिये।
पथ्य-जीरा मिलाकर दही भात खाना इसके सेवनसे ज्वर, दाह, वमि (छर्दि), भ्रम, | अतिसार, अग्निमांद्य, अरुचि और विशेषतः गर्भिणी
___ (५५८१) महाश्लेष्मकालानलरसः स्त्रीके रोग शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।
(रसे. सा. सं. ; र. रा. सु. । कफ ; रसे. चि. ( मात्रा-३-४ रत्ती )
म.। अ० ९) (५५८०) महाशीतज्वराङ्कशो रसः । हिङ्गलसम्भवं मृतं शिलागन्धकटङ्कणम् । (यो. त. । त. २० ; वृ. यो. त. । त. ५९)
तानं वङ्गं तथाभ्रश्च स्वर्णमाक्षिकतालकम् ।।
धृस्तूरं सैन्धवं कुष्ठं हिङ्गु पिप्पली कट्फलम् । अष्टौ तालकमेतदर्द्धममलं शम्बूकचूर्ग क्षिपे
दन्तीबीजं सोमराजी वनराजफलत्रिवृत् ॥ स्पश्चादत्र नवांशको वरशिखी सवै पुनः
वज्रीक्षीरेण सम्मी वटिकां कारयेद्भिषक् ।
पेषयेत् । तोयैस्तञ्च कुमारिकादलभवैः पक्वं गजाख्ये
कलायपरिमाणान्तु खादेदेकां यथावलम् ॥ पुटेप्येकद्वित्रिचतुर्थशीतहरणः शीताकशोऽयं
सन्निपातं निहन्त्याशु वृक्षमिन्द्राशनिर्यथा ।
मदसिंहो यथारण्ये मृगाणां कुलनाशनः॥ रसः॥
तथायं सर्वरोगाणां सद्यो नाशकरो महान् । ज्वरं धातुगतं चित्तभ्रमं पित्तास्रजान्गदान् ।
हिङ्गुलोत्थ पारद, शुद्ध मनसिल, शुद्ध गन्धक, रक्तातिसारग्रहणीदुर्नामास्राणि नाशयेत् ॥
सुहागेको खील, ताम्र भस्म, बंग भस्म, अभ्रक गुञ्जाद्वयमितं दद्यात्सितया सह वारिणा।
भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, शुद्ध हरताल, धतूरेके सहजीरकेण दध्यन्नं पथ्यं शीतज्वराङ्कुशे ॥
बीज, सेंधा नमक, कूठ, हींग, पीपल, कायफल, शुद्ध हरताल ८ भाग, शुद्र शंख चूर्ण ४ । शुद्ध जमालगोटा, बाबची, बड़के फल और निसोत भाग और शुद्र नीलाथोथा ९ भाग लेकर सबको समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली एक दिन घृतकुमारीके रसमें घोट कर यथा विधि ४ . बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण गजपुट दें । हर बार घृतकुमारीके रसमें घोटना मिलाकर सबको थोहर (सेंड---सेहुंड) के दूधमें चाहिये।
घोटकर मटरके समान गोलियां बना लें।
For Private And Personal Use Only