Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[ मकारादि
त्रयमेकत्र कुर्वीत सूक्ष्मं खल्वे विमर्दयेत् । (५५८७) महेश्वररसः (१) मुदृढे बन्धयेद्वस्त्रे स्थाप्य लोहजसम्पुटे ।
( महाशूलहररसः) मर्दितं गन्धकपलं तस्योपरि प्रदापयेत् । सम्पुटं मुद्रितं कृत्वा भूधराख्यपुटे पचेत् ॥
( र. का, धे. ; वृ. नि. र. । शूल. ) स्वाङ्गशीतलमुद्धृत्य दग्धगन्धं परित्यजेत् । रसं गन्धकं टङ्कणं श्वेतकाचं वेष्टयित्वा पुनर्वस्त्रं सूत्रे बद्ध्वा च गोलकम् ॥ विडं भारशृङ्ग तथा ख वराटम् । तत्तुल्यं च पुनर्गन्धं सम्पुटे निक्षिपेद्भिषक् । रविः शम्बुकं शृङ्गमेणस्य शङ्ख मुद्रित सम्पुटं कृत्वा पुनर्यन्त्रेण पाचयेत् ॥ स्नुही सूर्यदुग्धैर्दिनैकं विमर्थ ॥ हेमगर्भरसो नाम्ना सर्वव्याधिनिवारणः ।
पुटेदेव पश्चाद्विषव्योषयुक्तं रोगराजादिकं हन्ति इतरेषां तु का कथा ॥
___ समांशं च सर्वस्य सर्वं प्रदद्यात् । शुद्ध पारद ५ तोले और शुद्ध स्वर्णपत्र १।
मरीचाज्ययुक्तो महाशूलहर्ता तोला लेकर दोनोंको एकत्र खरल करें। जब स्वर्ण पारदमें मिल जाय तो उसमें ( प्रतिकर्ष १ माशेके
प्रमेहेषु सर्वेषु शूलेषु धीमान् ॥ हिसाबसे ) ६। माशे शुद्ध गन्धक मिलाकर कज्जली
क्षये दुर्निवारे विकारे च पाण्डौ बनावें और उसे मज़बूत कपड़ेमें बांधकर लोहेके
___तथा मन्दवह्नौ प्रदत्तं च हन्यात् । सम्पुट में रक्खें; तथा पोटलीके ऊपर ५ तोले शुद्ध
सुपुष्टिं बलं धातुवृद्धिं विदध्यागन्धकका चूर्ण डोलकर सम्पुटको बन्द करके भूधर
द्रसोऽयं महेशादि नाम प्रसिद्धः ॥ पुटमें पकावें । तत्पश्चात् पुटके स्वांग शीतल होने _शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, सुहागा, सफेद पर उसमेंसे औषधको निकाल कर उसके ऊपरसे | कांच, बिड नमक, बारहसींगेका सींग, अभ्रक भस्म, जले हुवे गन्धक और कपड़ेकी राखको साफ कर कौड़ी, ताम्रभस्म, घोंघे, हरिनका सींग और शंख दें तथा उसे पुनः कपड़ेमें बांधकर पूर्ववत् लोह सम्पुट समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कज्जली में बन्द करके भूधरपुटमें पकावें । इस बार भी बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलारसकी पोटलीके ऊपर उसके बराबर गन्धकका चूर्ण कर सबको १-१ दिन स्नुही ( थोहर सेंड) डालना चाहिये। जब पुट स्वांग शीतल हो जाए और आकके दूधमें घोट कर टिकिया बनाकर सुखा तो उसमेंसे औषधको निकालकर उसके ऊपरसे लें एवं उन्हें शरावसम्पुटमें बन्द करके गजपुट में गन्धक और कपड़ेकी राखको हटाकर शेष रसको फूंक दें । पुटके स्वांग शीतल होने पर उसमेंसे खरल कर लें।
औषधको निकाल कर उसमें सोंठ, मिर्च, पीपल इसके सेवनसे राजयक्ष्मादि समस्त रोग नष्ट और शुद्ध बछनागका समान भाग-मिश्रित चूर्ण होते हैं।
रसके बराबर मिलाकर खरल करें।
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