Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
२५९
वर्षमात्रमपि सेवितं जये
(५६६२) मृत्युञ्जयरसः (१०) न्मृत्युमेव सकला रुजा अपि ॥ ( भै. र. ; र. रा. सु. ; धन्व. । ज्वरा. ) हीरा भस्म, पारद भस्म और मोती भस्म मृतं गन्धकटङ्गण शुभविषं धुस्तूरबीजं कई समान भाग लेकर सबको नीबू के रसमें घोटकर नीत्वा भाग यथोत्तरद्विगुणितं चोन्मत्तमूलासम्पुटमें बन्द करके कुक्कुटपुट में पकावे ।
म्बुना। ___ इसे ३ रत्ती मात्रानुसार शहदके साथ १ / कुर्यान्माषवटीं सुखातिसुखदां सर्वान् ज्वरावर्ष तक सेवन करनेसे अकाल मृत्यु और समस्त
नाशयेदेष रोग नष्ट हो जाते हैं।
श्रीशिवशासनात् प्रजनितः मूतश्च मृत्युञ्जयः॥ (५६६१) मृत्युञ्जयरसः (९)
नारिकेलसितायुक्तं वातपित्तज्वरं जयेत् ।
मधुना श्लेष्मपित्तोत्थं ज्वरं सन्नाशयेत् ध्रुवम् ।। ( यो. र. । क्षय.)
सन्निपातज्वरं घोरं नाशयेदानीरतः ॥ त्रिकटु त्रिफला मृतगन्धको टङ्कण विषम् ।
शुद्ध पारद १ भाग, शुद्ध गन्धक २ भाग, यष्टी निशा कुबेराक्षो दन्तिबीजमथापि च ।।
सुहागेकी खील ४ भाग, शुद्ध बछनाग (मीठा एतानि समभागानि खल्बमध्ये विनिक्षिपेत् ।
विष ) ८ भाग, धतूरेके बीज १६ भाग और भृङ्गराजरसेनैव मर्दयेत्त्रिदिनं भिषक् ॥
त्रिकुटा (समान भाग मिश्रित सोंठ, मिर्च, पीपल) गुटिका माषमात्रास्तु छायाशुष्काश्च कारयेत् ।
३२ भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली अनुपानविशेषेण सर्वरोगेषु योजयेत् ॥
बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मृत्युञ्जयो रसो नाम सर्वरोगविदारणः ॥
मिलाकर सबको धतूरेकी जड़के रसमें घोटकर ___ सोंठ, मिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला,
१-१ माशेकी गोलियां बना लें। शुद्ध पारद, शुद्ध गन्धक, सुहागेकी खील, शुद्ध
इनके सेवनसे समस्त प्रकारके ज्वर नष्ट बछनाग ( मीठा विष ), मुलैठी, हल्दी, लता- |
होते हैं। करञ्जके बीज और शुद्ध जमालगोटा समान भाग लेकर प्रथम पारे गन्धककी कजली बनावें और फिर उसमें अन्य औषधोंका चूर्ण मिलाकर सबको
वातपित्त ज्वरमें नारियलके पानी और ३ दिन भंगरेके रसमें घोटकर १-१ माशेकी | गोलियां बना लें और उन्हें छायामें सुखा कर , कफपित्त ज्वरमें शहदके साथ; और। सुरक्षित रक्खें ।
सन्निपात ज्वरमें अदरकके रसके साथ इन्हें रोगोचित अनुपानके साथ सेवन करानेसे देना चाहिये । समस्त रोग नष्ट हो जाते हैं।
( व्यवहारिक मात्रा-२-३ रत्ती ।)
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