Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२५८
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
-
(५६५८) मृत्युञ्जयरसः (६) जरां वर्षेकेन क्षपयति च पुष्टिं वितनुते ( र. र. स. । अ. १२)
तनी तेजस्फारं रमयति वधूनामपि शतम् । तालं ताम्ररजो रसश्च गगनं
रसः श्रीमान्मृत्युञ्जय इति गिरीशेन कथितः गन्धश्च जैपालक
प्रभा को वाऽन्यः कथयितुमपारं प्रभवति ।।
लुङ्गाम्भोलवकदलित इति मातुलुङ्गद्रवं कणशो दीनारप्रमितं तदर्धमुदितं
दच्या त्रिदिनं मर्दयेदित्यर्थः ॥ टकं शिला माक्षिकम् ।
समान भाग शुद्ध पारद और गन्धककी दीनारद्वितयं विषस्य शिखिनः
| कज्जली बनाकर उसे नीबूके रस में घोटकर आतशीपिष्ट्वा रसैः पाचितो
| शीशीमें भर कर ( चन्द्रोदय बनानेकी विधिके यश्चिन्तामणिवज्ज्वरौघविजयी
अनुसार ) बालुका यन्त्रमें पकावें । जब शीशी नाम्ना तु मृत्युञ्जयः ।।
स्वांग शीतल हो जाय तो उसे तोडकर उसके शुद्ध हरताल, ताम्र भस्म, शुद्ध पारद, अभ्रक गले में लगे हुवे रससिन्दूरको निकाल लें। भस्म, शुद्ध गन्धक और जमाल गोटा १-१ तोला; अब १ भाग यह रससिन्दूर और १-१ सुहागा, शुद्ध मनसिल और स्वर्णमाक्षिक भस्म | भाग ताम्र भस्म, पीपलका चूर्ण तथा सुहागेकी खील ६-६ माशे तथा शुद्ध बछनाग ( मीठा विष ) २ | लेकर सबको एकत्र मिलाकर उसमें थोड़ा थोड़ा तोले लेकर प्रथम पारे गन्धकको कज्जली बनावें (बूंद बूंद) नीबूका रस डालते हुवे ३ दिन तक
और फिर उसमें अन्य ओषधियोंका चूर्ण मिलाकर खरल करें । सबको १ दिन चीतेके काथमें घोट कर शराव- इसे १ माशेकी मात्रानुसार घी और शहदके सम्पुटमें बन्द करें और उसे भूधरपुट में पकायें। साथ १ वर्ष तक सेवन करनेसे समरत रोग और
यह रस समस्त प्रकारके ज्वरोंको नष्ट जरा नष्ट हो कर शरीर पुष्ट और तेजस्वी होता करता है।
तथा सैकड़ों रमणियोंसे समागम करनेकी शक्ति आ
जाती है। (५६५९) मृत्युञ्जयरसः (७)
( व्यवहारिक मात्रा-४ रत्ती।) ( आ. वे. प्र. । अ. १; वृ. यो. त. । त. १४७;
(५६६०) मृत्युञ्जयरसः (८) रसे. चि. म. । अ. ८)
( र. प्र. मु. । अ. ८.) बलिः सूतो निम्बूरसविमंदितो भस्मसिकता- वज्रभस्म रसभस्म मौक्तिकं हये यन्त्रे कृत्वा समरविकणाटङ्कणरजः ।
मर्दितं च खलु निम्बुवारिणा । त्रिघनं लुगाम्भोलवकदलितः क्षौद्रहविषाऽ तच कुक्कुटपुटेन पाचितं वलिढो मापैकं दरयति समस्तं गदगणम् ॥ चूर्णयेन्मधुयुतं हि वल्लकम् ॥
For Private And Personal Use Only