Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१३४
भारत-भैषज्य-रत्नाकरः
[मकारादि
(५३५१) मधुकादिलेपः (४) मोम, मुलैठी, लोध, राल, मजीठ, सफेद (ग. नि. । प्रदरा.)
चन्दन, और मूर्वाक कल्क तथा ४ गुने पानीके
साथ घृत सिद्ध करें। मधुकोत्पलबीजानि पुषस्य शतावरी ।
इसे लगानेसे हर प्रकारका अग्नि-दग्ध-बग विदारीमिक्षुमूलं च कल्कैधौतघृताप्लुतः॥
भर जाता है। योनौ शिरसि गात्रे च प्रदेहोऽसृग्दरापहः ॥ मुलैठी, नीलोत्पल, खीरेके बीज, सतावर,
( मोम और रालके चूर्णको घी तैयार होनेके
पश्चात् उसमें मिलाकर थोड़ी देर पुनः पका विदारीकन्द और ईखकी जड़ समान भाग लेकर सबको पत्थर पर पीसकर (१०१ बार) धुले हुवे
लेना चाहिये ।) घीमें मिलाकर योनि, शिर और शरीरमें लेप कर- (५३५४) मनःशिलादिगुटिका नेसे रक्त प्रदर नष्ट हो जाता है।
(यो. त. । त. ७८; रा. मा. । विषरोगा. (५३५२) मधुसिक्थकादिलेपः
२८; वृ. नि. र. । विषरोगो.) ( वृ. नि. र. । क्षुद्ररो.)
मनः शिलाकुष्ठफरञ्जबीज
शिरीषकाश्मीरभवैः समांशैः । मधुसिक्थकसैन्धवघृतगुडमहिषाख्यरालनिर्यासैः।
विनिर्मितास्ये विधृतावलिप्ता गैरिकसहितलेपः पादस्फुटनापहः सिद्धः॥
संहारिणी वृश्चिकवैकृतस्य । मोम, सेंधा, घी, गुड़, गूगल, राल और गेरु
मनसिल, कूठ, करञ्ज बीज, सिरसकी छाल समान भाग लेकर पहिले घीको गरम करके उसमें
और केसरका चूर्ण समान भाग लेकर सबको गूगल पीसकर मिला, जब वह मिल जाय तो
(पानीमें पीसकर) गोलियां बनावें । (और छाया में मोम मिला दें; फिर गुड़, और अन्तमें सेंधा, राल
सुखालें।) तथा गेरुका चूर्ण मिलावें । ( यदि आवश्यकता प्रतीत हो तो घी अधिक भी ले सकते हैं।)
बिच्छूके काटे हुवे स्थान पर इस गोलीको
मुहकी लार (थूक) में घिसकर लेप करनेसे विष इसे लगानेसे पैरोंका फटना बन्द हो जाता है।
| उतर जाता है। (५३५३) मधुच्छिष्टाद्यघृतम्
(५३५५) मनःशिलादिलेपः (१) (व. से. । अग्निदग्ध वण.; वृ. मा. । आगंतुकत्रणा.;
(धन्व. । वाजी.) यो. र.; वृ. नि. र. । अग्निदग्ध.)
| मनःशिला वचाकुष्ठं सैन्धवं च पुनस्तथा । मच्छिष्टं समधुकं लोधं सर्जरसं तथा। मधुनालेपयेल्लिङ्गं द्रावयेत् कामिनीजनम् ॥ मनिष्ठां चन्दनं मूर्ती पिष्ट्वा सपिविपाचयेत् ॥ मनसिल, बच, कूठ और सेंधानमकका सर्वेषाममिदग्धानां व्रणरोपणमुत्तमम् ॥ समान-भाग चूर्ण एकत्र मिलाकर उसे शहदमें
For Private And Personal Use Only