Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
चतुर्थी भागः
अंजनप्रकरणम् ]
शुद्ध मैनसिल, तूतिया (शुद्ध), कस्तूरी, जटा - मांसी, सेंभलकी मूसली, सोंठ, शंख और कपूर समान भाग लेकर यथा विधि अञ्जन बनावें ।
यह अञ्जन ६ प्रकारके तिमिर रोगोंको नष्ट करता है।
(५४४३) मनःशिलाद्यञ्जनम् (५)
( व. से. । नेत्र. ; यो. र. ।
I
;
नेत्र. वृ. नि. र. । नेत्र. ) शिलासैन्धवकासीसङ्गव्योपरसाअनैः । सक्षौद्रैः काचशुक्रार्मतिमिरघ्नी रसक्रिया ॥
शुद्ध मनसिल, सेंधानमक, शुद्ध कसीस, शंख, सोंठ, काली मिर्च, पीपल और रसौत के १ - १ भाग चूर्णको एकत्र मिलाकर
भाग शह
दमें घोटकर सुरक्षित रक्खें ।
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(५४४५) मरिचादिचूर्णाञ्जनम् ( व. से. ; यो. र. । नेत्र रोगा; वा. भ. । उ. अ. १३ )
शाणार्द्ध मरिचं द्वौ च पिप्पल्यर्णव फेनयोः । शाणा सैन्धवच्छ व सौवीरका अनात् ॥ पिष्टं सूक्ष्मं शिलायाञ्च चूर्णाञ्जनमिदं शुभम् । कण्डूकाचकफार्त्तानां मलानाञ्च विशोधनम् ॥
शुद्ध मनसिल, शंखनाभि, पीपल और रसौत समान भाग लेकर, महीन चूर्ण करके शहद में घोटकर बत्तियां बनावें ।
१५१
काली मिर्चका चूर्ण आधी शाण, पीपलका चूर्ण १ शाण, समन्दर झाग १ शाण, सेंधा नमकका चूर्ण आधी शाण और सौवीराञ्जन (सुरमा) ९ शाण लेकर सबको एकत्र खरल करके अञ्जन बनावें ।
(५४४४) मनःशिलाद्या वतिः
( वं. से. ; ग. नि. । बाल रोगा. ११ ) मनःशिला शङ्खनाभिः पिप्पल्योऽथ रसाञ्जनम् । | बहना) बन्द हो जाता है ।
वर्तः क्षौद्रेण संयुक्ता बाले सर्वाक्षिरोगजित् ॥
यह अञ्जन आंखोंकी खुजली, काच, कफविकार और मैलको नष्ट करता है ।
(५४४६) मरिचाद्यञ्जनम् (१) ( ग. नि. । नेत्र रोगा . )
I
इसे आंखमें लगानेसे काच, शुक्र, अर्म और मरिचांशः शिलार्धेन योजितः सुप्रचूर्णितः । taari हरत्याशु नराणामयमञ्जनात् ॥
तिमिर रोग नष्ट होता है ।
१ भाग शुद्ध मनसिल और २ भाग काली मिरचके चूर्णको एकत्र घोटकर अञ्जन बनावें । इसे आंखों में लगाने से नेत्रस्राव ( ढलका - पानी
(५४४७) मरिचाद्यञ्जनम् (२) ( व. से. । नेत्र रोगा. ; यो. र. ) दध्ना विघृष्टं मरिचं रात्र्यन्ध्याञ्जनमिष्यते । पिप्पल्योऽपि हितास्तद्वगोशकृद्रसभाविताः ॥
काली मिरचको दही में घोटकर अथवा गायके
यह वर्ति बालकोंके समस्त नेत्र रोगोंको नष्ट गोबरके रस में पीपलको घोट कर लगाने से रतौंधा
करती है।
है।
For Private And Personal Use Only