Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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रसप्रकरणम् ]
चतुर्थों भागः
१५७
गन्धक, और शुद्ध मनसिल के समान भाग चूर्णको | भावना देकर सुरक्षित रक्खें । (जिनके स्वरस न एकत्र मिलाकर खरल करें।
मिल सकें उनके काथ लेने चाहिये । भावना इसे ५ माशेकी मात्रानुसार शहदमें मिलाकर प्रत्येक रसकी पृथक् पृथक देनी चाहिये ।) सेवन करनेसे पथरी अवश्य निकल जाती है। इसे १ रत्ती मात्रानुसार यथोचित अनुपानके (व्यवहारिक मात्रा-१ माशा)
साथ सेवन करने और पथ्य पालन करनेसे समस्त
नासा-रोग नष्ट होते हैं। (५४६९) मणिपर्पटी रसः
(५४७०) मण्डूरगुटिका (२. र. स. । उ. ख. अ. २४ नासारो.)
(व. से.; र. का. धे. । पाण्डु.) वनं मरकत पुष्पमिन्द्रनीलं सुचूर्णितम् ।।
| विडङ्गमुस्तत्रिफलादेवदारुपडूपणैः । रसहिङ्गलगन्धश्च कज्जली कारयेद्भिपक ॥
| निर्वाप्य सप्तधा मूत्रे मण्डूरं ग्राह्य मिष्यते ।। द्रावयेत्तां लोहपात्रे पर्पट्याकारतां नयेत् ।
तुल्यमात्रमयश्चूर्ण गोमूत्रेऽष्टगुणे पचेत् । निर्गुण्डी तुलसीशिग्रुधत्तूररविवहिजैः ।। तैरक्षमात्रां गुटिकां कृत्वा खादेद्दिने दिने । रसैोषवरारम्भासुरसैरपि भावयेत् ।
कामलापाण्डुरोगातः सुखमापद्यते क्षणात् ॥ आद्रकस्य रसेनापि सप्तधा परिभावयेत् ॥
बायबिडंग, नागरमोथा, हर्र, बहेड़ा, आमला, एवं सिद्धो रसो नाम्ना विख्याता मणिपर्पटी।
देवदारु, पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेठि और सेविता गुञ्जया तुल्या निहन्यान्नासिकागदान् ॥ काली मिर्च का चूर्ण १-१ भाग तथा सातबार पथ्योपचारादिवशात्सर्वव्याधीविशेषतः॥
गोमूत्रमें बुझा हुवा मण्डूर १२ भाग और लोहहीराभस्म, मरकत (पन्ना) भस्म, पुष्पमणि भस्म २४ भाग लेकर सबको १६ गुने गोमूत्रमें (पुखराज) भस्म, और नीलम भस्म, शुद्ध पारद, पकावें । जब गाढ़ा हो जाए तो ११-१। तोले शुद्ध हिंगुल और शुद्र गन्धक समान भाग लेकर | की गुटिका बना लें। प्रथम पारे गन्धक और हिंगुलकी कजली बनावें
इनके सेवन से पाण्डु और कामला रोग नष्ट और फिर उसे (बेरीकी अग्नि पर) लोहपात्र में पिघ. होता है । ( व्यवहारिक मात्रा ३ रत्ती ) लाकर उसमें अन्य रत्नेां की भस्में मिला दें एवं |
(५४७१) मण्डूरचूर्णम् गोबरके ऊपर बिछे हुवे केलेके पत्ते पर ढालकर,
(र. र. । शोथा.) ऊपरसे दूसरा कदलीपत्र ढककर गोबरसे दबा श्लक्ष्ण चूर्णश्च मण्डूरं गोमूत्रैः पाचयेदिनम् । दें। जब शीतल हो जाय तो निकालकर उसे वज्रवल्या रसैः पेष्यं चित्रकुड्मलसंयुतम् ॥ संभालू, तुलसी, सहजनेको छाल, धतूरा, आक, भक्षितञ्चाक्षमात्रञ्च ह्यसाध्यं श्वयधुं जयेत् । चीता, सांठ, पिर्च, पीपल, हर्र, बहेड़ा, आमला मण्डूर भस्मको १ दिन गोमूत्रमें पकाकर वज्रकेला, तुलसी, तथा अदकके रसकी सात सात | वल्ली (हड़जोड़ी) के रसमें घोटकर रखें।
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