Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 04
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
लेपप्रकरणम् ]
चतुर्थी भागः
१३७
( फस्त — रक्त - मोक्षण ) करावें, एवं तत्पश्चात् | नमकके चूर्णको धीमें मिलाकर लगाने से मक्खीके काली मिर्च, मनसिल, कसीस और तूतियाके देशको तुरन्त आराम हो जाता है । समान - भाग - मिश्रित चूर्णका ( पानी में पीसकर ) (५३६८) मरिचादिलेप: (७) लेप करें। ( वृ. नि. र. । विष; ध. व. । विष. ) मरिचं नागपेतं सिन्धुसौवर्चलान्वितम् । फणिवल्लीरसैपाद्धन्ति तद्वरटीविषम् ॥
(५३६६) मरिचादिलेप: ( ५ ) ( वा. भ. । चि. अ. १८ ) मरिचं तमालपत्रं कुष्ठं समनःशिलं सकासीसम् । तैलेन युक्तमुषितं सप्ताहं भाजने ताम्रे ॥
नालितं सिध्यं सप्ताहाद्धर्म्मसे विनोऽपैति । मासान्नवं किलासं स्नानेन विना विशुद्धस्य ॥
काली मिर्च, तमालपत्र ( तेजपात ), कूठ, मनसिल और कसीस के ५-५ तोले चूर्णको तेलमें मिलाकर मल्हम सा बनायें और उसे ताम्रपात्रमें भरकर रख दें; तथा सात दिन पश्चात् का लावें ।
इसका लेप करके थोड़ी देर धूपमें बैठनेसे एक सप्ताह में सिध्म (सीध) नामक कुष्ठ और एक मासमें नवीन किलास कुछ नष्ट हो जाता है । इन दिनों में स्नान नहीं करना चाहिये ।
(५३६७) मरिचादिलेप: ( ६ ) ( ग. नि. । विषा; रा. मा. । विप. ) मरिचतगरशुण्ठी के सरैस्तो यपिष्टै
यदि भवति विप्तं मक्षिकादष्टमङ्गम । विषमुपशममेति द्राक्तदानीं तदीयं
घृतयुतशत पुष्पा सैन्धवालेपनाद्वा ॥ काली मिर्च, तगर, साठ और केसर के समान—भाग—मिश्रित महीन चूर्णको पानी में पीस - कर लेप करनेसे अथवा सोयेके बीज और सेंधा
૧૮
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काली मिरच, सौठ, सेंधा नमक और सञ्चल (काला) नमक के समान भाग मिश्रित चूर्णको पानके रसमें घोट कर लेप करने से वरटी (भिर्र- भिड़ततैन ) का विष नष्ट हो जाता है ।
(५३६९) मसूरादिलेप: (१) (व. से. । वातव्या . ) ममूरविदलैः पिष्टैः शृतशीतेन वारिणा । चरणौ लेपयेत्सम्यक् पाददाहप्रशान्तये ॥
पैरोंमें दाह होती हो तो मसूरकी दालको उबाले हुवे ठंडे पानीमें पीसकर पैरों पर ( तलुवोमें) लेप करना चाहिये ।
(५३७०) मसूरादिलेपः (२) ( वृ. मा. ; धन्व. । क्षुद्ररोगा . ) मसूरेः सर्पिषा पिष्टैर्लिप्तमास्यं पयोन्वितैः । सप्तरात्रेण भवति पुण्डरीकदलप्रभम् ॥
मसूरके चूर्णको घीमें पीस कर, दूधमें मिलाकरमुखपर लेप करने से सात दिनमें मुख कमलके समान शोभायमान हो जाता है ।
(५३७१) मसूरादिलेप: (३) (ग.नि. । विसर्पा . ) मसुरैः खण्डितैर्मुद्गैश्चणकैः समकुष्ठकैः । यवैश्च निस्तुषैस्तद्रल्लेपो वीसर्पनाशनः ॥
For Private And Personal Use Only