Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 03
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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भारत-भैषज्य-रत्नाकरः।
[दकारादि
यह घृत पीनेसे वमन विरेचन होकर कुष्ठ । पर छान लीजिये । तत्पश्चात् इसमें १ प्रस्थ नष्ट होता है।
(१६० तोले) घी और दन्तीमूल तथा बेलगिरीका ( मात्रा-३-४ तोले ।)
समान भाग मिश्रित १३ तो. ४ माशे कल्क मिला (३०३६) दन्त्यादिघृतम् (२)
कर पकाइये । जब समस्त पानी जल जाय तो (वा. भ. । चि. स्था. अ. १९.) घृतको छान लीजिये। भावर्तकीतुलां द्रोणे पचेदष्टांशशेषितम् । यह घृत गुल्म, तिल्ली और पाण्डु रोगको तन्मूलैस्तत्र नि!हे घृतपस्थं विपापयेत् ॥ नष्ट करता है। पीत्वा तदेकदिवसान्तरितं सुजीर्णे। । नोट--पाककी उत्तमताके लिये ४ प्रस्थ मुनीत कोद्रवमुसंस्कृतकालिकेन ॥ (८ सेर ) पानी भी डालना चाहिये। कुष्ठं फिलासमपचीश्च विजेतुमिच्छ.
(३०३८) दशमूलक्षीरषट्मलपृतम् निच्छन् प्रजाश्च विपुलां ग्रहणं स्मृति ॥
(वं. से.; च. द.; इं. मा. र. र. । ज्वरा.) १ तुला (६। सेर ) महादन्ती को १ द्रोण
दशमूलीरसैः सपिः समीरैः पञ्चकोसकैः। (३२ सेर ) पानीमें पकाइये । जब ४ सेर पानी
सक्षा न्ति तसिद्ध ज्वरकासाग्निमन्दताम् ॥ शेष रह जाय तो उसे छानकर उसमें २ सेर या
वातपित्तकफव्यापीन्प्लीहानं पापकर्षति ॥ १६० तोले घी और.१३ तोले ४ माशे महा
४ सेर दशमूलको ३२ सेर पानीमें पकाइये दन्तीकी जड़का कल्क मिलाकर पकाइये । जब पानी
| जब चौथा भाग पानी शेष रहे तो छान लीजिये। जल जाय तो घृतको छान लीजिये।
इस घृतको तीसरे दिन पीने और घृत पचने । तत्पश्चात् यह काथ, २ सर था आर २ सेर दूध पर काजीसे बना हुवा कोदों का अन्न खानेसे कुष्ठ,
तथा पीपल, पीपलामूल, चव, चीता, सेठ और किलास और अपची (गण्डमाला भेद ) नष्ट होती
यवक्षारका समान भाग मिश्रित २० तो. कल्क तथा स्मरण शक्ति और सन्तानोत्पादन शक्ति की
लेकर सबको एकत्र मिलाकर पकाइये । जब दूध वृद्धि होती है।
और काथ जल जाय तो घीको छान लीजिए। नोट-घृत पकाते समय उसमें ८ सेर पानी यह घी ज्वर, खांसी, अग्निमांद्य, वातज पित्तज भी डालना चाहिये।
और कफज रोग तथा तिल्ली को नष्ट करता है। (३०३७) दन्त्यायं धृतम्
(३०३९) दशमूलघृतम् (१) (च. सं. । चि. स्था. अ. २०; वं. से. । पाण्डु.) | (र. र. । शिरो; कृ. नि. र.; यो. र. । नेत्र.) दन्त्याश्चतुष्पलरसे पिष्टैदैन्तीशलाधिः। दशमूलाम्मुना पक्वं घृतं दुग्धशतुर्गुणम् । तद्वत् प्रस्थो धृताद् गुल्मप्लीहपाण्ड्वत्रिदोषनुत् ॥ त्रिफलाकल्कसंयुक्तं तिमिरे पातजे पिवेत् ॥
४ पल (२० तोले ) दन्तीमूलको ३२० दशमूलका काथ ४ सेर, दूध ४ सेर, घी १ तोले पानीमें पकाकर चौथा भाग पानी शेष रहने । सेर, और त्रिफलेका कल्क १० तोले लेकर सबको
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