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मार्गशिर, वीरनि० सं०२४५६)
अहिंसा और अनेकान्त
- [ले० श्रीमान् पं० बेचरदासजी, न्याय-व्याकरणतीर्थ ]
माह
'अहिंसा' और 'अनेकान्त' ये दोनों शब्द एक तदुपरांत उसके साथ समभावको लिये हुए प्रेमपूर्वक तरहसे पर्यायवाचक हैं । यद्यपि व्याकरण, व्युत्पत्ति वर्ताव करना । ऐसा करनेसे ही भगवान महावीर-द्वारा
और शब्दकोशकी दृष्टिसे इनका पयोय वाचक होना कही गई अहिंसाका पालन हो सकता है, अन्यथा लग भग अप्रसिद्ध जैसा aa
नहीं। अनेकान्तदृष्टिमें है, फिर भी तत्त्वदृष्टिसे
सत्यशोधन को बाधन M इस लेखक लेखक पं० चरदासजी श्वे० जैन M विचारा जाय तो ये
करने वाले रंगभेद, दोनों शब्द बिलकुल समाजके गण्य-मान्य-उदारहृदय विद्वानोंमें से एक हैं।
जातिभेद, संप्रदायभेद, पर्याय-वाचक हैं, ऐसा आप प्राकृत व्याकरणादि अनेक ग्रंथोंके लेखक, अनु
गच्छभेद, क्रियाभेद, कहनेमें कोई बाधा नहीं वादक तथा संपादक हैं। साम्प्रदायिक कट्टरतासे दूर
आचारभेद, और है। जो मनुष्य अहिंसा रहते हैं और अहमदाबादक गुजरात-पुरातत्व-मंदिरमें
अनेक तरहके विधिधर्मका पालन करेगा एक ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित हैं। 'अनेकान्त' के लिये
विधानोंके भेदको भी उसकी दृष्टि, उसका आपने लेख देना स्वीकार किया था परंतु एकाएक
उचित स्थान प्राप्त है। आचार-विचार यदि आप भयंकर नेत्ररोगसे पीड़ित होगये और डेढ़
जैसे एक पाठशालामें अनकान्तकी जड़ पर महीनेसे असह्य वेदना उठा रहे हैं। ऐसी हालतमें कोई
अधिकारानुसार अनेक न होगा तो वह शख्स - आशा नहीं थी कि 'अनेकान्त' के प्रथमांकको आपके
नरहकी पढ़ाई होती है कभी अहिमाका वास्तलेखका सौभाग्य प्राप्त होगा । फिर भी संदेशविषयक
और वह पढ़ाई भिन्न विक पालन नहीं कर || मेरे अनुराधको पाकर आपन रोगशय्या पर पड़े पड़े
भिन्न होने पर भी मकता और जिम मही यह छोटासा लेग्य लिखकर भेजा है, जो आकारमें
उसके पढ़ने वाले परनुप्यकी दृष्टि और उम छोटा होने पर भी बड़े महत्वका है । इस वीराचिन
स्परमें लड़ते झगड़त का आचार-विचार - उत्माह तथा सत्कार्य-सहयोगके लिये आप विशेष
नहीं हैं वैमे ही संसार नकान्तका लक्ष करके । धन्यवादकं पात्र हैं। हार्दिक भावना है कि आप शीघ्र
में रहे हुए मब तरह बना होगा वह अवश्य ॥ में शीघ्र स्वास्थ्य लाभ करें और अनेकान्तके पाठकोंको
| के भेदको समन्वित अहिंसाका वास्तविक ill आपके गवेपणापूर्ण लेग्वोंके पढ़नका पूग अवसर |
करनेके लिए-एकता
-मंपादक के सत्रमें बाँधने के अर्थान जहाँ जहाँ अहिं- 0- :- = -= == ==S लिए-अनकान्तदृष्टिका माका पालन होता है वहाँ उसके गर्भमें अनेकान्तका आविर्भाव है। अनेकान्तके विचारसे सर्वत्र प्रेमका वास जरूर रहता है। और जहाँ जहाँ अनेकांतदृष्टि संचार होता है और मैत्री, प्रमोद कारुण्य, माध्यस्थ्य की प्रधानता है वहाँ सर्वत्र अहिंसाका अभ्रान्त रूपस जैसी उपयोगी भावनाओंकी वृद्धि होती है । इसीसे अवश्यंभाव है। इस आशयको लेकर ही यह कहा उत्तरोत्तर चित्तकी शुद्धि होती है । और चित्तशुद्धि गया है कि 'अहिंसा और अनेकांत ये दोनों एक तरह होने पर निज और जिनका तादात्म्य हो जाता है।
वाचक शब्द हैं। अनेकान्तका अर्थ यह है यह 'अनकान्त' पत्र ऐसे अहिंसात्मक अनकान्त कि अपनेसे भिन्न विचार, भिन्न आचार, भिन्न दृष्टि का प्रचार करनेके लिए ही उद्यत हुआ है । इसलिए
और हरतरहकी भिन्नताको-जिसकी नीव सत्यशोधन इसका विजय, कल्याण, मंगल और प्रचार होनमें है-देखकर चित्तमें लेश भी रंज न होने देना और शंकाका लेश भी अवकाश नहीं है।
पालन कर सकता है।
मिले।