Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 44] {जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र णो इणठे समठे, ववगय-प्रसि-मसि-किसि-वणिप्र-पणिअ-वाणिज्जा गं ते मणुआ पण्णता समणाउसो! (3) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में असितलवार के आधार पर जीविका-युद्धजीविका, युद्धकला, मषि--लेखन या कलम के आधार पर जीविका–लेखन-कार्य, लेखन-कला, कृषि खेती, वणिक-कला-विक्रय के आधार पर चलने वाली जीविका, पण्य-क्रय-विक्रय-कला तथा वाणिज्य-व्यापार-कला होती है ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य असि, मषि, कृषि, वणिक्, पणित तथा वाणिज्य-कला से--तन्मूलक जीविका से विरहित होते हैं। (4) अस्थि णं भंते ! तोसे समाए भरहे वासे हिरण्णेइ वा, सुवण्णेइ वा, कंसेइ वा, दूसेइ वा, मणि-मोतिय-संख-सिलप्पवालरत्तरयणसावइज्जेइ वा? हंता अस्थि, जो चेव णं तेसि मणुप्राणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छइ। (4) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में चांदी, सोना, कांसी, वस्त्र, मणियां, मोती,शंख, शिला-स्फटिक, रक्तरत्न-पद्मराग-पुखराज-ये सब होते हैं ? हाँ, गौतम ! ये सब होते हैं, किन्तु उन मनुष्यों के परिभोग में उपयोग में नहीं आते। (5) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे रायाइ वा, जुवरायाइ वा, ईसर-तलवरमाडंबिअ-कोडुबिन-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सस्थवाहाइ वा ? गोयमा ! णो इणठे समझें, ववगयइड्डिसक्कारा णं ते मणुआ पण्णत्ता। (5) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में राजा, युवराज, ईश्वर---ऐश्वर्यशाली एवं प्रभावशाली पुरुष, तलवर--सन्तुष्ट नरपति द्वारा प्रदत्त-स्वर्णपट्ट से अलंकृत-राजसम्मानित विशिष्ट नागरिक, माडंबिक-जागीरदार भूस्वामी, कौटुम्बिक-बड़े परिवारों के प्रमुख, इभ्यजिनकी अधिकृत वैभव-राशि के पीछे हाथी भी छिप जाए, इतने विशाल वैभव के स्वामी, श्रेष्ठीसंपत्ति और सुव्यवहार से प्रतिष्ठा प्राप्त सेठ, सेनापति--राजा की चतुरंगिणी सेना के अधिकारी, सार्थवाह--अनेक छोटे व्यापारियों को साथ लिए देशान्तर में व्यवसाय करने वाले समर्थ व्यापारी होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता। वे मनुष्य ऋद्धि-वैभव तथा सत्कार आदि से निरपेक्ष होते हैं। (6) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे दासेइ वा, पेसेइ वा, सिस्सेइ वा, भयगेइ वा, भाइल्लएइ वा, कम्मयरएइ बा? णो इणठे समठे, ववगयअभिओगा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो! (6) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में दास—मृत्यु पर्यन्त खरीदे हुए या गह-दासी से उत्पन्न परिचर, प्रेष्य-दौत्यादि कार्य करने वाले सेवक, शिष्य-अनुशासनीय, शिक्षणीय व्यक्ति, भूतक-वृत्ति या वेतन लेकर कार्य करने वाले परिचारक, भागिक-भाग बँटाने वाले, हिस्सेदार तथा कर्मकर-गृह सम्बन्धी कार्य करने वाले नौकर होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org