Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [199 उस महापद्मद्रह के दक्षिणी तोरण से रोहिता नामक महानदी निकलती है। वह हिमवान् पर्वत पर दक्षिणाभिमुख होती हुई 1605 र योजन बहती है / घड़े के मुंह से निकलते हुए जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई वेगपूर्वक मोतियों से निर्मित हार के-से आकार में वह प्रपात में गिरती है। तब उसका प्रवाह पर्वत-शिखर से नीचे प्रपात तक कुछ अधिक 200 योजन होता है। रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक विशाल जिबिका-प्रणालिका बतलाई गई है। उसका आयामलम्बाई एक योजन और विस्तार-चौड़ाई 123 योजन है। उसकी मोटाई एक कोश है / उसका प्राकार मगरमच्छ के खुले मुंह के आकार जैसा है / वह सर्वथा स्वर्णमय है, स्वच्छ है। रोहिता महानदी जहाँ गिरती है, उस प्रपात का नाम रोहिताप्रपात कुण्ड है / वह 120 योजन लम्बा-चौड़ा है। उसकी परिधि कुछ कम तीन सौ अस्सी योजन है। वह दश योजन गहरा है, स्वच्छ एवं सुकोमल-चिकना है। उसका पेंदा हीरों से बना है। वह गोलाकार है। उसका तट समतल है। उससे सम्बद्ध तोरण पर्यन्त समग्र वर्णन पूर्ववत् है। रोहिताप्रपात कुण्ड के बीचोंबीच रोहित नामक एक विशाल द्वीप है। वह 16 योजन लम्वाचौडा है। उसकी परिधि कुछ अधिक 50 योजन है। वह जल से दो कोश ऊपर ऊँचा उठा हया है। वह संपूर्णत: हीरकमय है, उज्ज्वल है-चमकीला है। वह चारों ओर एक पदमवरवेदिका द्वारा तथा एक बनखण्ड द्वारा घिरा हुअा है। रोहित द्वीप पर बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग है। उस भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन है / वह एक कोश लम्बा है। बाकी का वर्णन, प्रमाण प्रादि पूर्ववत् कथनीय है। उस रोहितप्रपात कुण्ड के दक्षिणी तोरण से रोहिता महानदी निकलती है। वह हैमवत क्षेत्र की ओर आगे बढ़ती है। शब्दापाती वृत्तवैताढय पर्वत जब आधा योजन दूर रह जाता है, तब वह पूर्व की ओर मुड़ती है और हैमवत क्षेत्र को दो भागों में बाँटती हुई आगे बढ़ती है। उसमें 28000 नदियाँ मिलती हैं। वह उनसे अापूर्ण होकर नीचे जम्बूद्वीप की जगती को चीरती हुई-भेदती हुई पूर्वी लवणसमुद्र में मिल जाती है। रोहिता महानदी के उद्गम, संगम आदि सम्बन्धी सारा वर्णन रोहितांशा महानदी जैसा है। उस महापद्मद्रह के उत्तरी तोरण से हरिकान्ता नामक महानदी निकलती है। वह उत्तराभिमुख होती हुई 1605 पायोजन पर्वत पर बहती है। फिर घड़े के मुंह से निकलते हुए जल की ज्यों जोर से शब्द करती हुई, वेगपूर्वक मोतियों से बने हार के आकार में प्रपात में गिरती है। उस समय ऊपर पर्वत-शिखर से नीचे प्रपात तक उसका प्रवाह कुछ अधिक दो सौ योजन का होता है। हरिकान्ता महानदी जहाँ गिरती है, वहाँ एक विशाल जिबिका-प्रणालिका बतलाई गई है। वह दो योजन लम्बी तथा पच्चीस योजन चौड़ी है। वह प्राधा योजन मोटी है। उसका आकार मगरमच्छ के खुले हुए मुख के आकार जैसा है। वह सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है / हरिकान्ता महानदी जिसमें गिरती है, उसका नाम हरिकान्ताप्रपात कुण्ड है। वह विशाल है / वह 240 योजन लम्बा-चौड़ा है / उसकी परिधि 756 योजन की है। वह निर्मल है / तोरणपर्यन्त कुण्ड का समग्र वर्णन पूर्ववत् जान लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org