Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 401
________________ 340] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र ग्रीष्मकाल की तीव्र उष्णता से रहित, मन्द आतप रूप लेश्या से युक्त, विचित्र-विविधलेश्यायुक्त, परस्पर अपनी अपनी लेश्याओं द्वारा अवगाढ-मिलित, पर्वत की चोटियों की ज्यों अपने अपने स्थान में स्थित, सब ओर के अपने प्रत्यासन्न-समीपवर्ती प्रदेशों को अवभासित करते हैं-आलोकित करते हैं, उद्योतित करते हैं, प्रभासित करते हैं। भगवन् ! जब मानुषोत्तर पर्वत के बहिर्वर्ती इन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र च्युत होता है तो वे अपने यहाँ कैसी व्यवस्था करते हैं ? गौतम ! जब तक नया इन्द्र उत्पन्न नहीं होता तब तक चार या पांच सामानिक देव परस्पर एकमत होकर, मिलकर इन्द्र-स्थान का परिपालन करते हैं-स्थानापन्न के रूप में कार्य-संचालन करते हैं--व्यवस्था करते हैं / भगवन् ! इन्द्र-स्थान कितने समय तक इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है ? गौतम ! वह कम से कम एक समय पर्यन्त तथा अधिक से अधिक छः मास पर्यन्त इन्द्रोत्पत्ति से विरहित रहता है / चन्द्र-मण्डल : संख्या : अबाधा आदि 175. कइ णं भंते ! चंद-मण्डला पण्णता? गोयमा ! पण्णरस चंद-मण्डला पण्णत्ता। जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे केवअइं प्रोगाहित्ता केवइया चन्द-मण्डला पण्णत्ता? गोयमा ! जम्बुद्दीवे 2 असीयं जोप्रण-सयं प्रोगाहित्ता पंच चन्द-मण्डला पण्णत्ता। लवणे णं भंते पुच्छा ? गोयमा ! लवणे णं समुद्दे तिणि तोसे जोमण-सए ओगाहित्ता एत्थ पं दस चन्द-मण्डला पण्णत्ता। एवामेव सपुब्वावरेणं जम्बुद्दीवे दोवे लवणे य समुद्दे पण्णरस चन्द-मण्डला भवन्तीतिमक्खायं / [175] भगवन् ! चन्द्र-मण्डल कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! चन्द्र-मण्डल 15 बतलाये गये हैं। भगवन् ! जम्बूद्वीप में कितने क्षेत्र का अवगाहन कर कितने चन्द्र-मण्डल हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप में 180 योजन क्षेत्र का अवगाहन कर पांच चन्द्र-मण्डल हैं, ऐसा बतलाया गया है। भगवन् ! लवण समुद्र में कितने क्षेत्र का अवगाहन कर कितने चन्द्र-मण्डल हैं ? गौतम ! लवण समुद्र में 330 योजन क्षेत्र का अवगाहन कर दस चन्द्र-मण्डल हैं। यों जम्बूद्वीप तथा लवण समुद्र के चन्द्र-मण्डलों को मिलाने से कुल 15 चन्द्र-मप्डल होते हैं। ऐसा बतलाया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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