Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 458
________________ सप्तम वक्षस्कार] [397 जम्बूद्वीप का स्वरूप 211. जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे कि पुढदि-परिणामे, पाउ-परिणामे, जीव-परिणामे, पोग्गल-परिणामे ? गोयमा ! पुढवि-परिणामेवि, पाउ-परिणामेवि, जीव-परिणामेवि, पोग्गल-परिणामेवि / जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे सव्व-पाणा, सव्व-जीवा, सव्व-भूना, सव्व-सत्ता, पुढविकाइप्रत्ताए, प्राउकाइप्रत्ताए, तेउकाइअत्ताए, वाउकाइअत्ताए, वणस्सइकाइप्रत्ताए उववण्णपुवा ? हंता गोयमा ! असई अहवा अणंतखुत्तो। [211] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी-परिणाम-पृथ्वीपिण्डमय है, क्या अप-परिणामजलपिण्डमय है, क्या जीव-परिणाम-जीवमय है, क्या पुद्गलपरिणाम-पुद्गल-स्कन्धमय है ? ___ गौतम ! पर्वतादियुक्त होने से पृथ्वीपिण्डमय भी है, नदी, झील आदि युक्त होने से जलपिण्डमय भी है, वनस्पति आदि युक्त होने से जीवमय भी है, मूर्त होने से पुद्गलपिण्डमय भी है / भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीव, सर्वजीवपञ्चेन्द्रिय जीव, सर्वभूत-वृक्ष (वनस्पति जीव), सर्वसत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु के जीवये सब पृथ्वीकायिक के रूप में, अकायिक के रूप में, तेजस्कायिक के रूप में, वायुकायिक के रूप में तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में उत्पन्न हुए हैं ? हाँ, गौतम ! बे असंकृत–अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं। जम्बूद्वीप : नाम का कारण 212. से केणठेणं भन्ते ! एवं वुश्चइ जम्बुद्दीवे दोवे ? गोयमा ! जम्बद्दीवे णं दीवे तत्थ 2 देसे तहि 2 बहवे जम्बू-रुवखा, जम्बू-बणा, जम्बू-वणसंडा, णिच्चं कुसुमित्रा (णिचं माइमा, णिच्चं लवइआ, णिच्चं थवइया, णिच्चं गुलइया, णिचं गोच्छिमा, णिच्चं जलिया, णिच्चं जुलिया, णिच्च विणमिया, णिचं पणमिश्रा, णिच्चं कुसुमित्र-माइअलवइअ-थवइअ-गुलइअ-गोच्छिन-जमलिअ-जुलिअ-विणमिअ-पणमिअ-सुविभत्त-) पिडिम-मंजरि-वडेंसगधरा सिरीए अईव उवसोभेमाणा चिट्ठति / , जम्बूए सुदंसणाए अणाढिए णामं देवे महिडिए जाव' पलियोवदिइए परिवसइ / से तेणढेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जम्बुद्दीवे दीवे इति / [212] भगवन् ! जम्बूद्वीप 'जम्बूद्वीप' क्यों कहलाता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से प्रापूर्ण वन हैं, वन-खण्ड हैं-जहाँ प्रमुखतया जम्बू वृक्ष हैं, कुछ और भी तरु मिले-जुले हैं / वहाँ वनों तथा वन-खण्डों में वृक्ष सदा-सब ऋतुओं में फूलों से लदे रहते हैं। (वे मंजरियों, पत्तों, फूलों के 1. देखें सूत्र-संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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