Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 447
________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र शोभा से युक्त, उपचित-पुष्ट, मांसल, विशाल, परिपूर्ण स्कन्ध-प्रदेश---कन्धों से सुन्दर प्रतीयमान, नीलम की ज्यों भासमान कटाक्ष --अर्धप्रेक्षित-आधी निगाह या तिरछी निगाह युक्त नेत्रों से शोभित, युक्तप्रमाण-यथोचित प्रमाणोपेत, विशिष्ट, प्रशस्त, रमणीय, गग्गरक नामक परिधान-विशेषविशिष्ट वस्त्र से विभूषित, हिलने-डुलने से बजने जैसी ध्वनि से समवेत (गले में धारण किये) घरघरक संज्ञक आभरण-विशेष से परिमण्डित-सुशोभित गले से युक्त, वक्षःस्थल पर वैकक्षिक-तिर्यक् या तिरछे रूप में प्रस्थापित, विविध प्रकार की मणियों, रत्नों तथा स्वर्ण द्वारा निर्मित घण्टियों की श्रेणियों-कतारों से सुशोभित, वरघण्टा-उपर्युक्त घण्टियों से विशिष्टतर घण्टाों की माला से उज्जवल श्री–शोभा धारण किये हुए, पद्म- सूर्यविकासी कमल, उत्पल-चन्द्रविकासी कमल तथा अखण्डित, सुरभित पुष्पों की मालाओं से विभूषित, वज्रमय खरयुक्त, मणि-स्वर्ण आदि द्वारा विविध प्रकार से सुसज्ज, उक्त खुरों से ऊर्ध्ववर्ती विखुर युक्त, स्फटिकमय दाँत युक्त, तपनीय स्वर्णमय जिह्वायुक्त, तालुयुक्त, तपनीय स्वर्ण-निर्मित योत्रक-रस्सी द्वारा विमान में सुयोजित, यथेच्छ गमनशील, प्रीति या चैतसिक उल्लास के साथ चलनेवाले, मन की गति की ज्यों सत्वर गमन करने वाले, मन को प्रिय लगनेवाले, अत्यधिक तेजगति युक्त, उच्च, गंभीर स्वर से गर्जना करते हुए, अपनी मधुर मनोहर ध्वनि द्वारा अाकाश को आपूर्ण करते हुए, दिशाओं को सुशोभित करते हुए चार हजार वृषभरूपधारी देव विमान के पश्चिमी पार्श्व का परिवहन करते हैं / चन्द्र-विमान के उत्तर में श्वेतवर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त-जन-जन को प्रिय लगनेवाले, सुन्दर प्रभा युक्त, वेग एवं बल से आपूर्ण संवत्सर-समय-युवावस्था से युक्त, हरिमेलक तथा मल्लिकाचमेली की कलियों जैसी आँखों से युक्त, चंचुरित-कुटिल गमन--तिरछी चाल या तोते की चोंच की ज्यों वक्रता के साथ अपने पैर का उच्चताकरण-ऊर्वीकरण, ललित-विलासपर्ण गति, पूलित-एक विशिष्ट गति, चल-वायु के तुल्य अतीव चपल गतियुक्त, लंघन-गर्त आदि का अतिक्रमण-खड्ड आदि फांद जाना, वल्गन--उत्कूर्दन ऊँचा कूदना, उछलना, धावन-शीघ्रतापूर्वक सीधा दौड़ना, धोरण-गति-चातुर्य-चतुराई से दौड़ना, त्रिपदी-भूमि पर तीन पैर रखना, जयिनी-गमनानन्तर जयवती-विजयशीला, जविनी-वेगवती-इन गतिक्रमों में शिक्षित, अभ्यस्त, गले में प्रस्थापित हिलते हुए रम्य, उत्तम आभूषणों से युक्त, नीचे की ओर सम्यक्तया नत हुए–झुके हुए देह के पार्श्वभागों से युक्त, देह के अनुरूप प्रमाणोपेत पार्श्वभागयुक्त, सहजतया सुनिष्पन्न-सुगठित पार्श्वभागयुक्त, परिपुष्ट, गोल तथा सुन्दर संस्थानमय कमरयुक्त, लटकते हुए, लम्बे, उत्तम लक्षणमय, समुचित प्रमाणोपेत, रमणीय चामर-पूछ के बालों से युक्त, अत्यन्त सूक्ष्म, सुनिष्पन्न, स्निग्ध-चिकने, मुलायम देह के रोमों की छवि से युक्त, मृदु-कोमल, विशद उज्ज्वल अथवा प्रत्येक रोम-कूप में एक-एक होने से परस्पर असम्मिलित नहीं मिले हुए, पृथक्-पृथक् परिदृश्यमान, सूक्ष्म, उत्तम लक्षणयुक्त, विस्तीर्ण, केसरपालि -स्कन्धकेशश्रेणी-कन्धों पर उगे बालों की पंक्तियों से सुशोभित, ललाट पर धारण कराये हुए दर्पणाकार आभूषणों से युक्त, मुखमण्डक-मुखाभरण, अवचूल-लटकते लूबे, चंवर एवं दर्पण के आकार के विशिष्ट आभूषणों से शोभित, परिमण्डित–सुसज्जित कटि-कमर युक्त, तपनीय---- स्वर्णमय खुर, जिह्वा तथा तालुयुक्त, तपनीय-स्वर्णनिर्मित रस्सी द्वारा विमान से सुयोजित—सुन्दररूप में जुड़े हुए, इच्छानुरूप गतियुक्त (प्रीति तथा उल्लास पूर्वक चलनेवाले, मन के वेग की ज्यों चलने वाले), मन को रमणीय प्रतीत होने वाले, अत्यधिक तेज गतियुक्त, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रमयुक्त, उच्च स्वर से हिनहिनाहट करते हुए, अपनी मनोहर ध्वनि द्वारा गगन-मण्डल को आपूर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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