Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 445
________________ 384] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सुहमलक्खणपसस्थविच्छिण्णकेसरवालिहराणं ललंतथासगललाउबरभूसणाणं मुहमण्डगनोचूलगचामरथासगपरिमण्डिनकडीणं तवणिज्जखुराणं तवणिज्जजीहाणं तवणिज्जतालुप्राणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइआणं कामगमाणं (पोइगमाणं मणोगमाणं) मणोरमाणं अमिप्रगईणं अमिअबलबीरिअपुरिसक्कारपरक्कमाणं महयाहयहेसिनकिलकिलाइअरवेणं मणहरेणं पूरता अंबरं दिसानो असोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीनो हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहंतित्ति / गाहा सोलसदेवसहस्सा, हवंति चंदेसु चेव सूरेसु / अद्वैव सहस्साई, एक्केक्कमी गहविमाणे // 1 // चत्तारि सहस्साई, गक्खत्तंमि अहवंति इक्किक्के / दो चेव सहस्साई, तारारूवेक्कमेक्कमि // 2 // एवं सूरविमाणाणं (गह विमाणाणं गक्वत्तविमाणाणं) तारास्वविमाणाणं गवरं एस देवसंघाएति। [200] भगवन् ! चन्द्रविमान को कितने हजार देव परिवहन करते हैं ? गौतम ! सोलह हजार देव परिवहन करते हैं। चन्द्रविमान के पूर्व में श्वेत–सफेद वर्ण युक्त, सुभग-सौभाग्ययुक्त, जन-जन को प्रिय लगने वाले, सुप्रभ–सुष्ठु प्रभायुक्त, शंख के मध्यभाग, जमे हुए ठोस अत्यन्त निर्मल दही, गाय के दूध के झाग तथा रजतनिकर-रजत-राशि या चाँदी के ढेर के सदृश विमल, उज्ज्वल दीप्तियुक्त, स्थिरसुदृढ़, लष्ट कान्त, प्रकोष्ठक कलाइयों से युक्त, वृत्त-गोल, पीवर-पुष्ट, सुश्लिष्ट-परस्पर मिले हुए, विशिष्ट, तीक्ष्ण-तेज-तीखी दंष्ट्राओं-डाढों से प्रकटित मुखयुक्त, रक्तोत्पल-लाल कमल के सदृश मृदु सुकुमाल-अत्यन्त कोमल तालु-जिह्वायुक्त, घनीभूत-अत्यन्त गाढ़े या जमे हुए शहद की गुटिका-गोली सदृश पिंगल वर्ण के लालिमा-मिश्रित भूरे रंग के नेत्रयुक्त, पीवर-उपचित-मांसल, उत्तम जंघायुक्त, परिपूर्ण, विपुल-विस्तीर्ण-चौड़े कन्धों से युक्त, मृदु-मुलायम, विशद-उज्ज्वल, सूक्ष्म, प्रशस्त लक्षणयुक्त, उत्तम वर्णमय, कन्धों पर उगे अयालों से शोभित उच्छित-ऊपर किये हुए, सुनमित-ऊपर से सुन्दर रूप में झुके हुए, सुजात-~सहज रूप में सुन्दर, प्रास्फोटित—कभी-कभी भूमि पर फटकारी गई पूंछ से युक्त, वज्रमय नखयुक्त, वज्रमय दंष्ट्रायुक्त, वज्रमय दाँतों वाले, अग्नि में तपाये हुए स्वर्णमय जिह्वा तथा तालु से युक्त, तपनीय स्वर्णनिर्मित योक्त्रक-रज्जू द्वारा विमान के साथ सुयोजित-भलीभाँति जुड़े हुए, कामगम- स्वेच्छापूर्वक गमन करने वाले, प्रीतिगम-उल्लास के साथ चलने वाले, मनोगम-मन की गति की ज्यों सत्वर गमनशील, मनोरम- मन को प्रिय लगनेवाले, अमितगति—अत्यधिक तेज गतियुक्त, अपरिमित बल, वीर्य, पुरुषार्थ तथा पराक्रम से युक्त, उच्च गम्भीर स्वर से सिंहनाद करते हुए, अपनी मधुर, मनोहर ध्वनि द्वारा गगन-मण्डल को आपूर्ण करते हुए, दिशात्रों को सुशोभित करते हुए चार हजार सिंहरूपधारी देव विमान के पूर्वी पार्व को परिवहन किये चलते हैं / चन्द्रविमान के दक्षिण में सफेद वर्णयुक्त, सौभाग्ययुक्त-जन-जन को प्रिय लगनेवाले, सुष्ठ प्रभायुक्त, शंख के मध्य भाग, जमे हुए ठोस अत्यन्त निर्मल दही, गोदुग्ध के झाग तथा रजतराशि की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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