Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text ________________ सप्तम वक्षस्कार] [389 पह णं भंते ! चंदे जोइसिदे जोइसराया चंदवडेंसए विमाणे चन्दाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए तुडिएणं सद्धि महयाहयणट्टगोमवाइन जाव' दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए ? गोयमा ! णो इणठे समठे। से केणठेणं जाव विहरित्तए ? गोयमा ! चंदस्स णं जोइसिंदस्स जोइसरण्णो चंदवडेंसए विमाणे चंदाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए माणवए चेइप्रखंभे वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु बहूईश्रो जिणसकहाओ सन्निखित्तानो चिट्ठति ताओ णं चंदस्स अण्णेसि च बहूणं देवाण य देवीण य अच्चणिज्जाप्रो पज्जुवासणिज्जानो, से तेणठेणं गोयमा ! णो पभुत्ति, पमू णं चंदे सभाए सुहम्माए चहिं सामाणिअसाहस्सोहिं एवं जाव' दिव्वाइं भोगभोगाइं भुजमाणे विहरित्तए केवलं परिभारिखीए, णो चेव णं मेहुणवत्तिनं / विजया 1, वेजयंती 2, जयंती 3, अपराजिना ४-सवेहि गहाईणं एमआयो अग्गमहिसोओ, छावत्तरस्सवि गहसयस्स एपात्रो अग्गमहिसोप्रो वत्तवओ, इमाहि गाहाहिति इंगालए विश्रालए लोहिअंके सणिच्छरे चेव / पाहुणिए पाहुणिए कणगसणामा य पंचेव // 1 // सोमे सहिए पासणे य कज्जोवए अ कम्बुरए / प्रयकरए दुंदुभए संखसनामेवि तिणेव // 2 // एवं भाणियव्वं जाव भावकेउस्स अग्गमाहिसीनो त्ति / 1. देखें सूत्र संख्या 142 2. देखें सूत्र संख्या 142 3. देखें सूत्र संख्या 89 4. तिण्णेव कंसनामा णीले रुप्पि प्रहति चत्तारि / भावतिलपुप्फवण्णे दग दगवण्णे य कायबधे य // 3 // इंदग्विधूमकेऊ हरिपिंगलए बुहे अ सुक्के अ। वहस्सइराहु अगत्थी माणवगे कामफासे अ॥४॥ धरए पमहे वियडे विसंधि कप्पे तहा पयल्ले य / जडियालए य अरुणे अम्गिलकाले महाकाले // 5 // सोत्थिन सोवत्थिपए वद्धमाणग तहा पलंबे अ। णिच्चालोए णिच्चुज्जोए सयंपभे चेव प्रोभासे // 6 // सेयंकर-खेमंकर-प्राभंकर-पभंकरे अ गायब्वो। परए विरए प्र तहा असोग तह बीतसोगे य // 7 // विमल-वितत्थ-विवत्थे विसास तह साल सुव्वए चेव / अनियट्टी एगजडी म होइ विजडी य बोधब्वे // 8 // कर-करिना राय-अगल बोधब्बे पुप्फ भावकेऊय / अट्ठासीई गहा खलु णायव्वा प्राणपृठवीए // 9 // - श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, शान्तिचन्द्रीया वृत्ति, पत्रांक 534-35 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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