Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text ________________ 344] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अम्भन्तराणंतरे सा चेव पुच्छा। गोयमा! णवणउई जोपणसहस्साई सत्त य बारसुत्तरे जोअणसए एगावणं च एगसटिभागे जोअणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छत्ता एगं चुण्णिाभागं पायामविक्खम्भेणं, तिणि अ जोअणसयसहस्साई पन्नरसहस्साई तिणि अ एगणवीसे जोअणसए किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणं / अब्भन्तरतच्चे णं (चन्दमण्डले केवइअंपायामविक्खम्भेणं केवइ परिक्खेवेणं) पण्णते। गोयमा ! णवणउई जोप्रणसहस्साई सत्त य पञ्चासोए जोअणसए इगतालीसं च एगसद्विभाए जोअणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता दोणि प्र चुण्णिाभाए आयामविक्खम्भेणं, तिणि अ जोअणसयसहस्साई पण्णरस जोअणसहस्साई पंच य इगुणापण्णे जोअणसए किचिविसेसाहिए परिक्खेवेणंति। एवं खलु एएणं उवाएगं णिक्खममाणे चंदे (तयाणन्तरामो मंडलामो तयाणंतरं मंडलं) संकममाणे 2 बावरि 2 जोअणाई एगावण्णं च एगसद्विभाए जोअणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता एगं च चुण्णिाभागं एगमेगे मंडले विक्खम्भवुद्धि अभिवद्धेमाणे 2 दो दो तीसाइं जोअणसयाई परिरयबुद्धि अभिवद्धमाणे 2 सव्वबाहिरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ / सव्वबाहिरए णं भन्ते ! चन्दमण्डले केवइ प्रायामविवखम्भेणं, केवइअंपरिक्खेवेणं पण्णते ? गोयमा ! एगं जोनणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोअणसए आयामविक्खम्भेणं, तिणि प्र जोपणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई तिणि प्र पण्णरसुत्तरे जोपणसए परिक्खेवेणं / बाहिराणन्तरे णं पुच्छा ? गोयमा ! एगं जोअणसयसहस्सं पञ्च सत्तासीए जोप्रणसए णव य एगसट्ठिभाए जोप्रणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता छ चुण्णिाभाए आयामविक्खम्भेणं, तिण्णि प्रजोअणसयसहस्साई अट्ठारस सहस्साई पंचासीइं च जोषणाई परिक्खेवेणं। बाहिरतच्चे णं भन्ते ! चन्दमण्डले केवइ आयामविक्खम्भेणं, केवइयं परिक्खेवेणं पण्णते? गोयमा? एगं जोअणसयसहस्सं पंच य चउदसुत्तरे जोपणसए एगूणवीसं च एगसट्ठिभाए जोअणस्स एगसट्ठिभागं च सत्तहा छेत्ता पंच चुण्णिाभाए पायामविक्खम्भेणं, तिण्णि अ जोमणसयसहस्साई सत्तरस सहस्साइं अट्ठ य पणपण्णे जोअणसए परिक्खेवेणं / एवं खलु एएणं उवाएणं पविसमाणे चन्दे जाव' संकममाणे 2 बावरि 2 जोषणाई एगावणं च एगसद्विभाए जोमणस्स एगसद्विभागं च सत्तहा छेत्ता एगं चुण्णिाभागं एगमेगे मण्डले विक्खम्भबुद्धि णिन्वुद्धमाणे 2 दो दो तीसाइं जोअणसयाई परिरयवृद्धि णिबुद्धमाणे 2 सम्वन्भंतरं मण्डलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। 1. देखें सूत्र यही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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