Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 430
________________ सप्तम वक्षस्कार] गोयमा! कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, णो लम्भइ कुलोवकुलं / कुलं जोएमाणे महाणक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे अस्सेसाणक्खत्ते जोएइ। साविट्टिण्णं प्रमावासं कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलेण वा जुत्ता उवकुलेण वा जुत्ता साविट्ठी अमावासा जुत्तत्ति वत्तव्वं सिमा / पोटुवईण्णं भंते ! अमावासं तं चेव दो जोएइ कुलं वा जोएइ, उवकुलं वा जोएइ, कुलं जोएमाणे उत्तरा-फग्गुणी-णक्खत्ते जोएइ, उवकुलं जोएमाणे पुश्वा-फग्गुणी, पोटुवईण्णं अमावासं (कुलं वा जोएइ, उबकुलं वा जोएइ, कुलेण वा जुत्ता, उवकुलेण वा जुत्ता पोटुवई अमावासा) वत्तव्वं सिआ। मग्गसिरिणं तं चैव कुलं मूले णक्खत्ते जोएइ उवकुले जेट्टा, कुलोवकुले अणुराहा जाव' जुत्तत्तिवत्तव्वं सिया। एवं माहीए फग्गुणीए प्रासाढीए कुलं वा उपकुलं वा कुलोवकुलं वा, अबसेसिवाणं कुलं वा उवकुलं वा जोएइ / जया णं भंते ! साविट्ठी पुण्णिमा भवइ तया णं माही अमावासा भवइ ? जया णं भंते ! माही पुणिमा भवइ तथा णं साविट्ठी अमावासा भवइ ? हंता गोयमा ! जया णं साविट्ठी तं चेव वत्तव्वं / जया गं भन्ते ! पोटुबई पुण्णिमा भवइ तया णं फग्गुणी अमावासा भवइ, जया णं फग्गुणी पुणिमा भवइ तया णं पोट्ठवई अमावासा भवइ ? हंता गोयमा ! तं चेव, एवं एतेणं अभिलावेणं इमाओ पुण्णिमायो अमावासाप्रो अन्वानीप्रस्सिणी पुण्णिमा चेत्ती अमावासा, कत्तिगी पुण्णिमा वइसाही अमावासा, मग्गसिरी पुण्णिमा जेठामूलो अमावासा, पोसी पुण्णिमा आसाढी अमावासा। [194] भगवन् ! कुल, उपकुल तथा कुलोपकुल कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! कुल बारह, उपकुल बारह तथा कुलोपकुल चार बतलाये गये हैं। बारह कुल-१. धनिष्ठा कुल, 2. उत्तरभाद्रपदा कुल, 3. अश्विनी कूल, 4. कृत्तिका कल. 5. मृगशिर कूल, 6. पूष्य कूल, 7. मघा कुल, 8. उत्तरफाल्गुनी कुल, 9. चित्रा कुल, 10. विशाखा कुल, 11. मूल कुल तथा 12. उत्तराषाढा कुल / जिन नक्षत्रों द्वारा महीनों की परिसमाप्ति होती है, वे माससदृश नाम वाले नक्षत्र कुल कहे जाते हैं / जो कुलों के अधस्तन होते हैं, कुलों के समीप होते हैं, वे उपकुल कहे जाते हैं / वे भी माससमापक होते हैं / जो कुलों तथा उपकुलों के अधस्तन होते हैं, वे कुलोपकुल कहे जाते हैं। बारह उपकुल–१. श्रवण उपकुल, 2. पूर्वभाद्रपदा उपकुल, 3. रेवती उपकुल, 4. भरणी उपकुल, 5. रोहिणी उपकुल, 6. पुनर्वसु उपकुल, 7. अश्लेषा उपकुल, 8. पूर्वफाल्गुनी उपकुल, 6. हस्त उपकुल, 10. स्वाति उपकुल, 11. ज्येष्ठा उपकुल तथा 12. पूर्वाषाढा उपकुल / 1. देखें सूत्र यही (पोट्ठवई अमावासा के स्थान पर मग्गसिरी अमावासा) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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