Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सप्तम वक्षस्कार] गाथार्थ-प्रथम से अन्तिम तक सब नक्षत्रों के संस्थान इस प्रकार हैं 1. अभिजित नक्षत्र का गोशीर्षावलि के सदश, 2. श्रवण नक्षत्र का कासार-तालाब के समान. 3. धनिष्ठा नक्षत्र का पक्षी के कलेवर के सदृश, 4. शतभिषा नक्षत्र का पुष्प-राशि के समान, 5. पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र का अर्धवापी-आधी बावड़ी के तुल्य, 6. उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र का भी अर्धवापी के सदृश, 7. रेवती नक्षत्र का नौका के सदृश, 8. अश्विनी नक्षत्र का अश्व के-घोड़े केस्कन्ध के समान, 9. भरणी नक्षत्र का भग के समान, 10. कृत्तिका नक्षत्र का क्षुरगृह-नाई की पेटी के समान, 11. रोहिणी नक्षत्र का गाड़ी की धुरी के समान, 12. मृगशिर नक्षत्र का मृग के मस्तक के समान, 13. आर्द्रा नक्षत्र का रुधिर की बूंद के समान, 14. पुनर्वसु नक्षत्र का तराजू के सदृश, 15. पुष्य नक्षत्र का सुप्रतिष्ठित वर्द्धमानक-एक विशेष आकार-प्रकार की सुनिमित तश्तरी के समान, 16. अश्लेषा नक्षत्र का ध्वजा के सदृश, 17. मघा नक्षत्र का प्राकार---प्राचीर या परकोटे के सदश, 18. पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र का प्राधे पलंग के समान. 16. उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र का भी प्राधे पलंग के सदृश, 20. हस्त नक्षत्र का हाथ के समान, 21. चित्रा नक्षत्र का मुख पर सुशोभित पीली जही के पूष्प के सदश, 22, स्वाति नक्षत्र का कीलक के तल्य, 23. विशाखा नक्षत्र का दामनिपशुत्रों को बाँधने की रस्सी के सदृश, 24. अनुराधा नक्षत्र का एकावली-इकलड़े हार के समान, 25. ज्येष्ठा नक्षत्र का हाथी-दांत के समान, 26. मूल नक्षत्र का बिच्छू की पूछ के सदृश, 27. पूर्वाषाढा नक्षत्र का हाथी के पैर के सदृश तथा 28. उत्तराषाढा नक्षत्र का बैठे हुए सिंह के सदृश संस्थान-आकार बतलाया गया है। नक्षत्रचन्द्रसूर्ययोग काल 163. एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते कतिमुहुत्ते चन्देण सद्धि जोगं जोएई ? गोयमा ! णव मुहुत्ते सत्तावीसं च सत्तद्विभाए मुहुत्तस्स चन्देण सद्धि जोगं जोएइ / एवं इमाहि गाहाहि अणगन्तब्वं अभिइस्स चन्द-जोगो, सत्तहि खंडिओ अहोरत्तो। ते हुंति णवमुहुत्ता, सत्तावीसं फलामो अ॥१॥ सयभिसया भगणीओ, अद्दा अस्सेस साइ जेट्ठा य / एते छण्णक्खता, पण्णरस-मुहत्त-संजोगा // 2 // तिण्णेव उत्तराई, पुणव्वसू रोहिणी विसाहा य / एए छण्णक्खत्ता, पणयाल-मुहुत्त-संजोगा // 3 // अवसेसा णक्खत्ता, पण्णरस वि हुँति तीसइमुहुत्ता। चन्दमि एस जोगो, णक्खत्ताणं मुणेनवो // 4 // एतेसि गं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते कतिग्रहोरत्ते सरेण सद्धि जोगं जोए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org