Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सप्तम वक्षस्कार [353 ससि समग-पुण्णमासि, जोएंति विसमचारि-णखत्ता। कडुनो बहूदनो आ, तमाहु संवच्छरं चन्दं // 2 // विसमं पवालिणो, परिणमन्ति अणुऊसु दिति पुष्फफलं। वासं न सम्म वासइ, तमाहु संवच्छरं कम्मं // 3 // पुढवि-दगाणं च रसं, पुप्फ-फलाणं च देइ प्राइच्चो। अप्पेण वि वासेणं, सम्म निष्फज्जए सस्सं // 4 // प्राइच्च-तेम-तविमा, खणलवदिवसा उऊ परिणमन्ति। पूरेइ प्र णिण्णथले, तमाहु अभिवद्धिरं जाण // 5 // सणिच्छर-संवच्छरे णं भन्ते कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! अट्ठाविसइ विहे पण्णत्ते, तं जहा--- अभिई सवणे घणिट्ठा, सयभिसया दो प्र होंति भद्दवया। रेवइ अस्सिणि भरणी, कत्तिअ तह रोहिणी चेव // 1 // . (मिगसिरं, अद्दा, पुण्णयसू. पुस्सो, असिलेसा, मघा, पुध्वाफग्गुणी, उत्तराफग्गुणी, हत्थो, चित्ता, साती, विसाहा, अणुराहा, जेट्ठा, मूलो, पुवायासाढा) उत्तराश्रो आसाढायो / जंवा सणिच्चरे महग्गहे तीसाए संवच्छरेहि सव्वं णक्खत्तमण्डलं समाणेइ सेत्तं सणिच्छर-संवच्छरे॥ [184] भगवन् ! संवत्सर कितने बतलाये गये हैं ? गौतम ! संवत्सर पांच बतलाये गये हैं-- 1. नक्षत्र-संवत्सर, 2. युग-संवत्सर, 3. प्रमाणसंवत्सर, 4. लक्षण-संवत्सर तथा 5. शनैश्चर-संवत्सर / भगवन् ! नक्षत्र-संवत्सर कितने प्रकार का बतलाया गया है ? गौतम ! नक्षत्र-संवत्सर बारह प्रकार का बतलाया गया है—श्रावण, भाद्रपद, आसोज, (कार्तिक, मिगसर, पौष, माघ, फाल्गुन, चैत्र, वैशाख, जेठ तथा) आषाढ / अथवा बृहस्पति महाग्रह बारह वर्षों की अवधि में जो सर्व नक्षत्रमण्डल का परिसमापन करता है-उन्हें पार कर जाता है, वह कालविशेष भी नक्षत्र-संवत्सर कहा जाता है। भगवन! यग-संवत्सर कितने प्रकार का बतलाया गया है? गौतम ! युग-संवत्सर पांच प्रकार का बतलाया गया है-१. चन्द्र-संवत्सर, 2. चन्द्र-संवत्सर, 3. अभिर्वाद्धत-संवत्सर, 4. चन्द्र-संवत्सर तथा 5. अभिवद्धित-संवत्सर। भगवन् ! प्रथम चन्द्र-संवत्सर के कितने पर्व-पक्ष बतलाये गये हैं ? गौतम ! प्रथम चन्द्र-संवत्सर के चौबीस पर्व बतलाये गये हैं। भगवन् ! द्वितीय चन्द्र-संवत्सर के कितने पर्व बतलाये गये हैं ? गौतम ! द्वितीय चन्द्र-संवत्सर के चौबीस पर्व बसलाये गये हैं / भगवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org