Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ चतुर्व वक्षस्कार] 263 भगवन् ! पण्डक वन में रक्तकम्बलशिला नामक शिला कहाँ बतलाई गई है ? गौतम ! मन्दर पर्वत की चूलिका के उत्तर में, पण्डक वन के उत्तरी छोर पर रक्तकम्बलशिला नामक शिला बतलाई गई है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बी तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ी है, सम्पूर्णतः तपनीय स्वर्णमय तथा उज्ज्वल है। उसके बीचों-बीच एक सिंहासन है। वहाँ भवनपति आदि बहुत से देव-देवियों द्वारा ऐरावत क्षेत्र में उत्पन्न तीर्थंकरों का अभिषेक किया जाता है। मन्दर पर्वत के काण्ड 137. मन्दरस्स णं भन्ते ! पन्वयस्स कह कंडा पण्णता? गोयमा! तो कंडा पण्णत्ता, तं जहा-हिटुिल्ले कंडे 1, मज्झिमिल्ले कंडे 2, उवरिल्ले मन्दरस्स णं भन्ते ! पव्वयस्स हिडिल्ले कंडे कतिविहे पण्णते? गोयमा! चउन्विहे पणत्ते, तं जहा-पुढवी 1, उवले 2, बहरे 3, सक्करे 4 / मज्झिमिल्ले णं भन्ते ! कंडे कतिविहे पण्णते ? गोयमा ! चउरिवहे पण्णत्ते, तं जहा-अंके 1, फलिहे 2, जायस्वे 3, रयए 4 / उरिल्ले कंडे कतिविहे पण्णते? / गोयमा! एगागारे पण्णत्ते, सव्वजम्बूणयामए। मन्दरस्स णं भन्ते ! पव्वयस्स हेटिल्ले कंडे केवइ बाहल्लेणं पण्णत्ते ? गोयमा ! एगं जोअणसहस्सं बाहल्लेणं पण्णत्ते। मज्झिमिल्ले कंडे पुच्छा, गोयमा! तेवट्टि जोअणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णते। उवरिल्ले पुच्छा, गोयमा! छत्तीसं जोअणसहस्साई बाहल्लेणं पण्णत्ते / एवामेव सपुरवावरेणं मन्दरे पव्वए एगं जोअणसयसहस्सं सव्वग्गेणं पण्णत्ते। [137] भगवन् ! मन्दर पर्वत के कितने काण्ड-विशिष्ट परिमाणानुगत विच्छेद-पर्वत-क्षेत्र के विभाग बतलाये हैं ? गौतम ! उसके तीन विभाग बतलाये गये हैं.---१. अधस्तन विभाग नीचे का विभाग, 2. मध्यम विभाग–बीच का विभाग तथा 3. उपरितन विभाग-ऊपर का विभाग / भगवन् ! मन्दर पर्वत का अधस्तन विभाग कितने प्रकार का बतलाया गया है ? गौतम ! वह चार प्रकार का बतलाया गया है-१. पृथ्वी-मृत्तिकारूप, 2. उपलपाषाणरूप, 3. वज्र-हीरकमय तथा 4. शर्करा-कंकरमय / भगवन् ! उसका मध्यम विभाग कितने प्रकार का बतलाया गया है ? गौतम ! वह चार प्रकार का बतलाया गया है--१. अंकरलमय, 2. स्फटिकमय, 3. स्वर्णमय तथा 4. रजतमय। भगवन् ! उसका उपरितन विभाग कितने प्रकार का बतलाया गया है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org