Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 332) [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र __ जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं किंसंठिया तावविखत्तसंठिई पण्णत्ता ? गोयमा! उद्धोमुहकलंबुनापुप्फसंठाणसंठिा पण्णत्ता / तं चेव सव्वं अव्वं णवरं णाणत्तं जं अंधयारसंठिइए पुत्ववणि पमाणं तं तावखित्तसंठिईए अव्वं, तं ताव खित्तसंठिईए पुव्ववण्णिअं पमाणं तं अंधयारसंठिईए अवंति / [168] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, तो उसके ताप-क्षेत्र की स्थिति-सूर्य के प्रातप से परिव्याप्त आकाश-खण्ड की स्थिति-उसका संस्थान किस प्रकार का बतलाया गया है ? गौतम ! तब ताप-क्षेत्र की स्थिति ऊर्ध्वमुखी कदम्ब-पुष्प के संस्थान जैसी होती है-उसकी ज्यों संस्थित होती है। वह भीतर---मेरु पर्वत की दिशा में संकीर्ण-संकड़ी तथा बाहर-लवण समुद्र की दिशा में विस्तीर्ण-चौड़ी, भीतर से वृत्त--अर्ध वलयाकार तथा बाहर से पृथुल-पृथुलतापूर्ण विस्तृत, भीतर अंकमुख–पद्मासन में अवस्थित पुरुष के उत्संग-गोद रूप प्रासनबन्ध में मुख-अग्रभाग जैसी तथा बाहर गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसी होती है। __ मेरु के दोनों ओर उसकी दो बाहाएँ---भुजाएँ-पार्श्व में अवस्थित हैं-नियत परिमाण हैं--- उनमें वृद्धि-हानि नहीं होती। उनकी-उनमें से प्रत्येक की लम्बाई 45000 योजन है। उसकी दो बाहाएँ अनवस्थित-अनियत परिमाणयुक्त हैं / वे सर्वाभ्यन्तर तथा सर्वबाह्य के रूप में अभिहित हैं। उनमें सर्वाभ्यन्तर बाहा की परिधि मेरु पर्वत के अन्त में 1486 . योजन है / भगवन् ! यह परिक्षेपविशेष-परिधि का परिमाण किस आधार पर कहा गया है ? गौतम ! जो मेरु पर्वत की परिधि है, उसे 3 से गुणित किया जाए। गुणनफल को दस का भाग दिया जाए। उसका भागफल (मेरु पर्वत की परिधि 31623 योजन x 3 = 94866 : 10 = 9486 50) इस परिधि का परिमाण है / उसकी सर्वबाह्य बाहा की परिधि लवण समुद्र के अन्त में 14868 . योजन-परिमित है। भगवन् ! इस परिधि का यह परिमाण कैसे बतलाया गया है ? गौतम ! जो जम्बूद्वीप की परिधि है, उसे 3 से गुणित किया जाए, गुणनफल को 10 से विभक्त किया जाए। वह भागफल (जम्बूद्वीप की परिधि 31622843-648684 : 10 = 64868 ) इस परिधि का परिमाण है। भगवन् ! उस समय ताप-क्षेत्र की लम्बाई कितनी होती है ? गौतम ! उस समय ताप-क्षेत्र की लम्बाई 753333 योजन होती है, ऐसा बतलाया गया है। मेरु से लेकर जम्बूद्वीप पर्यन्त 45000 योजन तथा लवण समुद्र के विस्तार 200000 योजन के : भाग 333333 योजन का जोड़ ताप-क्षेत्र की लम्बाई है। उसका संस्थान गाड़ी की धुरी के अग्रभाग जैसा होता है। भगवन् ! तब अन्धकार-स्थिति कैसा संस्थान-आकार लिये होती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org