Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 397
________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र भगवन् ! क्या वे अणुरूप-सूक्ष्म अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या बादररूपस्थूल अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? . गौतम ! वे अणुरूप --सूक्ष्म अनन्तरावगाढ क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं तथा बादररूपस्थूल अनन्तरावगाढ क्षेत्र का भी अतिक्रमण करते हैं / भगवन् ! क्या वे अणुबादररूप ऊर्ध्व क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या अध:क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या तिर्यक् क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे अणु बादररूप ऊर्ध्व क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, अधःक्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं और तिर्यक् क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं-तीनों क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। भगवन् ! क्या वे साठ मुहूर्त प्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में गमन करते हैं या मध्य में गमन करते हैं या अन्त में गमन करते हैं ? गौतम ! वे आदि में भी गमन करते हैं, मध्य में भी गमन करते हैं तथा अन्त में भी गमन करते हैं। भगवन् ! क्या वे स्वविषय में अपने उचित स्पष्ट-अवगाढ-अनन्तरावगाढ रूप क्षेत्र में गमन करते हैं या अविषय में-अनुचित विषय में अस्पृष्ट-अनवगाढ-परम्परावगाढ क्षेत्र में गमन करते हैं ? गौतम ! वे स्पृष्ट-अवगाढ-अनन्तरावगाढ रूप उचित क्षेत्र में गमन करते हैं, अस्पृष्ट-अनवगाढ-परम्परावगाढ रूप अनुचित क्षेत्र में गमन नहीं करते / भगवन् ! क्या वे अानुपूर्वीपूर्वक-क्रमशः आसन्न क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या अनानुपूर्वीपूर्वक-क्रमश: अनासन्न क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे प्रानुपूर्वीपूर्वक-क्रमशः अासन्न क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं, अनानुपूर्वीपूर्वकक्रमशः अनासन्न क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे एक दिशा का-एक दिशाविषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या छह दिशानों का-छह दिशाविषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे नियमतः छह दिशाविषयक क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। इस प्रकार वे अवभासित होते हैं-ईषत्-थोड़ा-किञ्चित् प्रकाश करते हैं, जिसमें स्थूलतर वस्तुएं दीख पाती हैं। भगवन् ! क्या वे सूर्य उस क्षेत्र रूप वस्तु को स्पर्श कर प्रकाशित करते हैं या उसका स्पर्श किये बिना ही प्रकाशित करते हैं ? प्रस्तुत प्रसंग चौथे उपांग प्रज्ञापनासूत्र के 28 वें आहारपद से स्पृष्टसूत्र, अवगाढसूत्र, अनन्तरसूत्र, अणु-बादर-सूत्र, ऊर्ध्व-अधःप्रभृतिसूत्र, प्रादि-मध्यावसानसूत्र, विषयसूत्र, प्रानुपूर्वीसूत्र, षड्दिश् सूत्र आदि के रूप में विस्तार से ज्ञातव्य है। ___ इस प्रकार दोनों सूर्य छहों दिशाओं में उद्योत करते हैं, तपते हैं, प्रभासित होते हैं--प्रकाश करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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