Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ सप्तम वक्षस्कार [335 तं भंते ! कि पुट्ठ गच्छन्ति (णो अपुढे गच्छन्ति, तं भंते ! कि ओगाढं गच्छन्ति प्रणोगाढं गच्छन्ति ? गोयमा ! ओगाढं गच्छन्ति, णो प्रणोगाढं गच्छन्ति / तं भंते ! कि अणंतरोगाढं गच्छन्ति, परंपरोगाढं गच्छन्ति ? गोयमा ! अणंतरोगाढं गच्छन्ति णो परंपरोगाढं गच्छन्ति / तं भंते ! कि अणु गच्छन्ति बायरं गच्छन्ति ? गोयमा ! अणु पि गच्छन्ति बायरंपि गच्छन्ति, तं भंते ! कि उद्धं गच्छन्ति अहे गच्छन्ति तिरियं गच्छन्ति ? गोयमा ! उद्धंपि गच्छन्ति, तिरिश्रपि गच्छन्ति, अहेवि गच्छन्ति / तं भंते ! कि प्राइं गच्छन्ति, मज्झ गच्छन्ति, पज्जवसाणे गच्छन्ति ? गोयमा ! प्राइंपि गच्छन्ति मज्झवि गच्छन्ति पज्जवसाणेवि गच्छन्ति / तं भंते ! कि सविसयं गच्छन्ति, अविसयं गच्छन्ति ? गोयमा ! सविसयं गच्छन्ति, णो अविसयं गच्छन्ति / तं भंते ! कि प्राणुपुग्वि गच्छन्ति प्रणाणुपुचि गच्छन्ति ? गोयमा ! आणुपुष्वि गच्छन्ति णो अणाणुपुब्धि गच्छन्ति, तं भंते ! कि एगदिसि गच्छन्ति छद्दिसि गच्छन्ति ? गोयमा ! ) नियमा छदिसति, एवं प्रोभासेंति, तं भंते ! कि पुढे ओभासेंति ? एवं आहारपयाई णेप्रवाई पुट्ठोगाढमणंतरअणुमहादिविसयाणपुष्वी प्रजाव णिअमा छदिसि, एवं उज्जोर्वेति, तति, पभाति 11 / [170] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सूर्य प्रतीत-गतिविषयीकृत-पहले चले हुए धोत्र काअपने तेज से व्याप्त क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं अथवा प्रत्युत्पन्न-वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं या अनागत-भविष्यवर्ती-जिसमें गति की जाएगी उस-क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं ? ___ गौतम ! वे अतीत क्षेत्र का अतिक्रमण नहीं करते, वे वर्तमान क्षेत्र का अतिक्रमण करते हैं। वे अनागत क्षेत्र का भी अतिक्रमण नहीं करते / भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं या अस्पर्श पूर्वकस्पर्श नहीं करते हुए--अतिक्रमण करते हैं ? (गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अतिक्रमण करते हैं, स्पर्श नहीं करते हुए अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ कर अधिष्ठित कर अतिक्रमण करते हैं या अनवगाढ कर--अनाश्रित कर अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे गम्यमान क्षेत्र को अवगाढ कर अतिक्रमण करते हैं, अनवगाढ कर अतिक्रमण नहीं करते। भगवन् ! क्या वे गम्यमान क्षेत्र का अनन्तरावगाढ–अव्यवधानाश्रित–व्यवधानरहितअव्यवहित रूप में अतिक्रमण करते हैं या परम्परावगाढ–व्यवधानयुक्त-व्यवहित रूप में अतिक्रमण करते हैं ? गौतम ! वे उस क्षेत्र का अव्यवहित रूप में अवगाहन करके अतिक्रमण करते हैं, व्यवहित रूप में अवगाहन करके अतिक्रमण नहीं करते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org