Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 264 [जम्बूद्वीपप्रमन्तिसूत्र गौतम ! वह एकाकार एक प्रकार का बतलाया गया है ? वह सर्वथा जम्बूनद-स्वर्णमय है। भगवन ! मन्दर पर्वत का अधस्तन विभाग कितना ऊँचा बतलाया गया है? गौतम ! वह 1000 योजन ऊँचा बतलाया गया है / भगवन ! मन्दर पर्वत का मध्यम विभाग कितना ऊँचा बतलाया गया है ? गौतम ! वह 63000 योजन ऊँचा बतलाया गया है / भगवन् ! मन्दर पर्वत का उपरितन विभाग कितना ऊँचा बतलाया गया है ? गौतम ! वह 36000 योजन ऊँचा बतलाया गया है। यों उसकी ऊँचाई का कुल परिमाण 1000+63000+36000 = 100000 योजन है। मन्दर के नामधेय 138. मन्दरस्स णं भन्ते ! पव्वयस्स कति णामधेज्जा पण्णता? गोयमा! सोलस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा मन्दर 1, मेरु 2, मणोरम 3, सुदंसण 4, सयंपभे अ५, गिरिराया 6 / रयणोच्चय 7, सिलोच्चय 8, मज्झे लोगस्स 6, गाभी य 10 // 1 // अच्छे प्र 11, सूरिआवत्ते 12, सूरिप्रावरणे 13, ति प्रा। उत्तमे प्र 14, दिसादी अ 15, बडेसेति प्र 16, सोलसे // 2 // से केणठेणं भन्ते ! एवं वुच्चइ मन्दरे पम्वए 2 ? गोयमा ! मन्दरे पव्वए मन्दरे णामं देवे परिवसइ महिड्डीए जाव' पलिप्रोवमट्ठिइए, से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ मन्दरे पक्वए 2 अदुत्तरं तं चेवत्ति। [138] भगवन् / मन्दर पर्वत के कितने नाम बतलाये गये हैं ? गौतम ! मन्दर पर्वत के 16 नाम बतलाये गये हैं-१. मन्दर, 2. मेरु, 3. मनोरम, 4. सुदर्शन, 5. स्वयंप्रभ, 6. गिरिराज, 7. रत्नोच्चय, 8. शिलोच्चय, 6. लोकमध्य, 10. लोकनाभि, 11. अच्छ, 12. सूर्यावर्त, 13. सूर्यावरण, 14. उत्तम या उत्तर, 15. दिगादि तथा 16. अवतंस / भगवन् ! वह मन्दर पर्वत क्यों कहलाता है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर मन्दर नामक परम ऋद्धिशाली, पल्योपम के आयुष्य वाला देव निवास करता है, इसलिए वह मन्दर पर्वत कहलाता है। अथवा उसका यह नाम शाश्वत है / नीलवान वर्षधर पर्वत 136. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दोवे गोलवन्ते णामं वासहरपब्बए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स उत्तरेणं, रम्मगवासस्स दक्खिणेणं, पुरथिमिल्ललवणसमुहस्स पच्चस्थिमिल्लेणं, पच्चथिमिल्ललवणसमुद्दस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुदीवे 2 णीलवन्ते 1. देखें सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org