Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text ________________ सप्तम वक्षस्कार] [323 भगवन् ! जम्बूद्वीप-स्थित मन्दर पर्वत के सर्वबाह्य सूर्य-मण्डल से तोसरा बाह्य सूर्य-मण्डल कितनी दूरी पर बतलाया गया है ? गौतम ! सर्वबाह्य सूर्य-मण्डल से तीसरा बाह्य सूर्य-मण्डल 4532466 योजन की दूरी पर बतलाया गया है। इस प्रकार अहोरात्र मण्डल के परित्यागरूप क्रम से जम्बूद्वीप में प्रविष्ट होता हुमा सूर्य तदनन्तर मण्डल से तदनन्तर मण्डल पर संक्रमण करता हुआ-पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर जाता हुआ, एक-एक मण्डल पर 216 योजन की अन्त र-वृद्धि कम करता हुअा सर्वाभ्यन्तर-मण्डल पर पहुँच कर गति करता है-आगे बढ़ता है। सूर्यमण्डल का आयाम-विस्तार आदि 165. जंबुद्दीवे दीवे सव्वभंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइयं पायामविक्खंभेणं केवइअं परिक्खेवेणं पण्णते? गोयमा ! णवणउइं जोश्रणसहस्साई छच्च चत्ताले जोअणसए आयामविक्खंभेणं तिणि य जोपणसयसहस्साई पण्णरस य जोअणसहस्साई एगूणणउई च जोप्रणाई किचिविसेसाहिबाई परिक्खेवेणं। अन्भंतराणंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइ आयामविक्खंभेणं केवइग्रंपरिक्खेवेणं पण्णते ? गोयमा ! णवणउई जोअणसहस्साई छच्च पणयाले जोअणसए पणतीसं च एगसद्विभाए जोनणस्स आयामविक्खंभेणं तिण्णि जोअणसयसहस्साइं पण्णरस य जोश्रण-सहस्साई एगं सत्तुत्तरं जोअणसयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते। प्रभंतरतच्चे णं भंते ! सूरमंडले केवइग्रं आयामविक्खंभेणं केवइग्रंपरिक्खेवेणं पण्णते? गोयमा! णवणउई जोप्रणसहस्साई छच्च एकावण्णे जोअणसए णव य एगसटिभाए जोपणस्स आयामविक्खंभेणं तिण्णि अ जोअणसयसहस्साई पण्णरस जोमणसहस्साई एगं च पणवीसं जोग्रणसयं परिक्खेवेणं / एवं खलु एतेणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंतरामो मंडलानो तयाणंतरं मंडलं उवसंकममाणे 2 पंच 2 जोपणाई पणतीसं च एगसट्ठिभाए जोअणस्स एगमेगे मंडले विक्खंभवुद्धि अभिवद्धेमाणे 2 अट्ठारस 2 जोअणाई परिरयबुद्धि अभिवद्धेमाणे 2 सम्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चारई। सव्वबाहिरए णं भंते ! सूरमंडले केवइ आयामविक्खंभेणं केवइयं परिक्खेवेणं पण्णत्ते ? मोयमा ! एग जोयणसयसहस्सं छच्च सट्टे जोपणसए आयामविक्खंभेणं तिणि अ -जोप्रणसयसहस्साई अट्ठारस य सहस्साई तिण्णि प्रपण्णरसुत्तरे जोअणसए परिक्खेवेणं / बाहिराणंतरे णं भंते ! सूरमंडले केवइअंपायामविक्खंभेणं केवइ परिक्खेवेणं पण्णते? . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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