Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text ________________ सप्तम वक्षस्कार 1325 . गौतम ! द्वितीय बाह्य सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई 100654 36 योजन एवं परिधि 318267 योजन बतलाई गई है। भगवन् ! तृतीय बाह्य सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई और परिधि कितनी बतलाई गई है ? गौतम ! तृतीय बाह्य सूर्य-मण्डल की लम्बाई-चौड़ाई 100648 55 योजन तथा परिधि 318276 योजन बतलाई गई है। यों पूर्वोक्त क्रम के अनुसार प्रवेश करता हुया सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर जाता हुआ एक-एक मण्डल पर 535 योजन की विस्तार-वृद्धि कम करता हुआ, अठारह-अठारह योजन की परिधि-वृद्धि कम करता हुआ सर्वाभ्यन्तर-मण्डल पर पहुँच कर आगे गति करता है। मुहूर्त-गति 166. जया णं भंते ! सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइ खेतं गच्छइ ? ___ गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई दोणि अ एगावण्णे जोअणसए एगुणतीसं च सद्विभाए जोप्रणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ / तया गं इहगयस्स मणूसस्स सीनालीसाए जोअणसहस्सेहि दोहि अ तेवढेहि जोपणसएहिं एगवीसाए अ जोश्रणस्स सट्ठिभाएहि सूरिए चक्खुप्फासं हवमागच्छइ त्ति। से णिक्खममाणे सूरिए नवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि सव्वभंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ ति / ___ जया णं भंते ! सूरिए अब्भतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं केवइनं खेत्तं गच्छइ ? ___ गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई दोणि अएगावणे जोअणसए सेआलीसं च सद्रिभागे जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स सीयालीसाए जोअणसहस्सेहि एगूणासीए जोअणसए सत्तावण्णाए प्र सद्विभाएहि जोअणस्स सट्ठिभागं च एगसट्टिधा छेत्ता एगूणवीसाए चुण्णिाभागेहि सूरिए चक्खुप्फासं हव्वमागच्छइ / से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तसि अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ / जया णं भंते ! सूरिए अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवह खेत्तं गच्छ? गोयमा ! पंच पंच जोपणसहस्साई दोण्णि अ बावण्णे जोअणसए पंच य सद्विभाए जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ / तया णं इहगयस्स मणुसस्स सोनालीसाए जोअणसहस्सेहि छण्णउइए जोअनुहिं तेत्तीसाए सट्ठिभागेहिं जोअणस्स सट्ठिभागं च एगसद्विधा छेत्ता दोहि चुण्णिाभागेहि सूरिए चक्खष्फासं हव्वमागच्छति। एवं खलु एतेणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंतराम्रो मंडलानो तयाणंतरं मंडलं संकममाणे संकमाणे अट्ठारस 2 सट्ठिभागे जोअणस्स एगमेगे मंडले मुहुत्तगई अभिवुड्ढेमाणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480