Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 389
________________ 328] [जम्बूद्वीपप्रजप्तिसूत्र यों पूर्वोक्त क्रम से प्रवेश करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल पर संक्रमण करता हुआ, प्रतिमण्डल पर मुहूर्त-गति को 6 योजन कम करता हुआ, कुछ अधिक 85 योजन पुरुषछायापरिमित अभिवृद्धि करता हुआ सर्वाभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है। ये दूसरा छह मास है / इस प्रकार दूसरे छह मास का पर्यवसान होता है। यह प्रादित्य-संवत्सर है। यों आदित्य-संवत्सर का पर्यवसान बतलाया गया है। दिन-रात्रि-मान 167. जया णं भंते ! सरिए सवभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अद्वारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहण्णिा दुवालसमुहुत्ता राई भवई / से णिक्खममाणे सरिए णवं संवच्छरं प्रयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ / जया णं भंते ! सूरिए अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगसट्ठिभागमुहत्तेहि ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहि अ एगसद्विभागमुहुर्तेहि अहिअत्ति / से णिक्खममाणे सरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अभंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ चहि एगट्ठिभागमुहुतेहिं ऊणे दुवालसमुहुत्ता राई भवई चहि एगसट्ठिभागमुहुत्तेहि अहिअत्ति / एवं खलु एएणं उवाएणं निक्खममाणे सूरिए तयाणंतरानो मंडलानो तयाणंतरं मंडलं संकममाणे दो दो एगसटिभागमुहुत्तेहि मंडले दिवसखित्तस्स निव्वुद्धमाणे 2 रयणिखित्तस्स अभिवढेमाणे 2 सव्वबाहिरं मंडलं उक्संकमित्ता चारं चरइति / जया णं सरिए सम्वन्भंतराओ मंडलाओ सम्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया गं सम्वन्भंतरमंडलं पणिहाय एगेणं तेसीएणं राइंदिप्रसएणं तिणि छाव? एगसट्ठिभागमुहुत्तसए दिवसखेत्तस्स निव्वुद्धता रणिखेत्तस्स अभिवुद्धत्ता चारं चरइ ति। जया णं भंते ! सूरिए सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं केमहालए दिवसे केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! तया णं उत्तम कट्टपत्ता उक्कोसिमा प्रद्वारसमुहत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमहत्ते दिवसे भवड ति। एस णं पढमे छम्मासे, एस णं पढमस्स हम्मासस्स पज्जवसाणे से सूरिए दोच्चं छम्मासं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ / ___ जया णं भंते ! सरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं केमहालए दिवसे भवइ केमहालिया राई भवइ ? गोयमा ! अट्ठारसमुहत्ता राई भवइ दोहि एगसट्ठिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहत्ते दिवसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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