Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पञ्चम वक्षस्कार] [305 कई एक वहाँ चाँदी बरसाते हैं। कई स्वर्ण, रत्न, हीरे, गहने, पत्ते, फूल, फल, बीज, मालाएँ, गन्ध-सुगन्धित द्रव्य, वर्ण-हिंगुल आदि रंग (वस्त्र) तथा चूर्ण-सौरभमय पदार्थों का बुरादा बरसाते हैं। कई एक मांगलिक प्रतीक के रूप में अन्य देवों को रजत भेंट करते हैं, (कई एक स्वर्ण, कई एक रत्न, कई एक हीरे, कई एक आभूषण, कई एक पत्र, कई एक पुष्प, कई एक फल, कई एक बीज, कई एक मालाएँ, कई एक गन्ध, कई एक वर्ण तथा) कई एक चूर्ण भेंट करते हैं / कई एक तत्- वीणा आदि, कई एक वितत-ढोल प्रादि, कई एक धन-ताल आदि तथा कई एक शुषिर-बांसुरी प्रादि चार प्रकार के वाद्य बजाते हैं। कई एक उत्क्षिप्त-प्रथमतः समारभ्यमाण-पहले शुरू किये गये, पादात्त-पादबद्ध-छन्द के चार भागरूप पादों में बँधे हुए, मंदाय बीच-बीच में मूर्च्छना आदि के प्रयोग द्वारा धीरे-धीरे गाये जाते तथा रोचितावसान-यथोचित लक्षणयुक्त होने से अवसान पर्यन्त समुचित निर्वाहयुक्त—ये चार प्रकार के गेय-संगीतमय रचनाएँ गाते हैं। कई एक अञ्चित, द्रत, पारभट तथा भसोल नामक चार प्रकार का नृत्य करते हैं / कई दार्टान्ति तिक. सामान्यतोविनिपातिक एवं लोकमध्यावसानिक-चार प्रकार का अभिनय करते हैं। कई बत्तीस प्रकार की नाटय-विधि उपदर्शित करते हैं। कई उत्पात-निपात-आकाश में ऊँचा उछलना--नीचे गिरना-उत्पातपूर्वक निपातयुक्त, निपातोत्पात-निपातपूर्वक उत्पातयुक्त, संकुचित-प्रसारित-नृत्यक्रिया में पहले अपने आपको संकुचित करना सिकोड़ना, फिर प्रसृत करना-फैलाना, (रिमारिय-रंगमंच से नृत्य-मुद्रा में पहले निकलना, फिर वहाँ आना) तथा भ्रान्तसंभ्रान्त-जिसमें प्रदर्शित अद्भुत चरित्र देखकर परिषद्वर्ती लोग-प्रेक्षकवृन्द भ्रमयुक्त हो जाएँ, आश्चर्ययुक्त हो जाएँ, वैसी अभिनयशून्य, गात्रविक्षेपमात्र नाट्यविधि उपर्शित करते हैं। कई ताण्डव-प्रोद्धत-प्रबल नृत्य करते हैं, कई लास्य-सुकोमल नृत्य करते हैं। कई एक अपने को पीन–स्थूल बनाते हैं, प्रदर्शित करते हैं, कई एक बूत्कार प्रास्फालन करते हैं-बैठते हुए पुतों द्वारा भूमि आदि का आहनन करते हैं, कई एक वल्गन करते हैं--पहलवानों की ज्यों परस्पर बाहुओं द्वारा भिड़ जाते हैं, कई सिंहनाद करते हैं, कई पीनत्व, बूत्कार-आस्फालन, वल्गन एवं सिंहनाद क्रमश: तीनों करते हैं, कई घोड़ों की ज्यों हिनहिनाते हैं, कई हाथियों की ज्यों गुलगुलाते हैं--मन्द-मन्द चिघाड़ते हैं, कई रथों की ज्यों घनघनाते हैं, कई घोड़ों की ज्यों हिनहिनाहट, हाथियों की ज्यों गुलगुलाहट तथा रथों की ज्यों घनघनाहट क्रमशः तीनों करते हैं, कई एक आगे से मुख पर चपत लगाते हैं, कई एक पीछे से मुख पर चपत लगाते हैं, कई एक अखाड़े में पहलवान की ज्यों पैतरे बदलते हैं, कई एक पैर से भूमि का प्रास्फोटन करते हैं -जमीन पर पैर पटकते हैं, कई हाथ से भूमि का पाहनन करते हैं--जमीन पर थाप मारते हैं, कई जोर-जोर से आवाज लगाते हैं / कई इन क्रिया-कलापों को-करतवों को दो-दो के रूप में, तीन-तीन के रूप में मिलाकर प्रशित करते हैं। कई हंकार करते हैं। कई पूत्कार करते हैं / कई थक्कार करते हैं-थक-थक शब्द उच्चारित करते हैं। कई अवपतित होते हैं-नीचे गिरते हैं / कई उत्पतित होते हैं-ऊँचे उछलते हैं। कई परिपतित होते है-तिरछे गिरते हैं। कई ज्वलित होते हैं अपने को ज्वालारूप में प्रदर्शित करते हैं। कई तप्त होते हैं—मन्द अंगारों का रूप धारण करते हैं। कई प्रतप्त होते हैं--दीप्त अंगारों का रूप धारण करते हैं। कई गर्जन करते हैं। कई बिजली की ज्यों चमकते हैं। कई वर्षा के रूप के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org