Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पन्चम सत्कार [289 शीघ्र ही सुधर्मा सभा में मेघसमूह के गर्जन के सदृश गंभीर तथा अति मधुर शब्दयुक्त, एक योजन वर्तुलाकार, सुन्दर स्वर युक्त सुघोषा नामक घण्टा को तीन बार बजाते हुए, जोर जोर से उद्घोषणा करते हुए कहो-देवेन्द्र, देवराज शक का आदेश है-वे जम्बूद्वीप में भगवान् तीर्थंकर का जन्म-महोत्सव मनाने जा रहे हैं / देवानुप्रियो। आप सभी अपनी सर्वविध ऋद्धि, द्युति, बल, समुदय, आदर, विभूति, विभूषा, नाटक-नृत्य-गीतादि के साथ, किसी भी बाधा की पर्वाह न करते हुए सब प्रकार के पुष्पों, सुरभित पदार्थों, मालामों तथा आभूषणों से विभूषित होकर दिव्य, तुमुल ध्वनि के साथ महती ऋद्धि (महती द्युति, महत् बल, महनीय समुदय, महान् आदर, महती विभूति, महती विभूषा, बहुत बड़े ठाटबाट, बड़े-बड़े नाटकों के साथ, अत्यधिक बाधाओं के बावजूद उत्कृष्ट पुष्प, गन्ध, माला, आभरणविभूषित) उच्च, दिव्य वाद्यध्वनिपूर्वक अपने-अपने परिवार सहित अपने-अपने विमानों पर सवार होकर विलम्ब न कर शक (देवेन्द्र, देवराज) के समक्ष उपस्थित हों।' देवेन्द्र, देवराज शक्र द्वारा इस प्रकार आदेश दिये जाने पर हरिनिगमेषी देव हर्षित होता है, परितुष्ट होता है, देवराज शक का आदेश विनयपूर्वक स्वीकार करता है। प्रादेश स्वीकार कर शक्र के पास से प्रतिनिष्क्रान्त होता है-निकलता है। निकल कर, जहाँ सुधर्मा सभा है एवं जहां मेघसमूह के गर्जन के सदृश गंभीर तथा अति मधुर शब्द युक्त, एक योजन वर्तुलाकार सुघोषा नामक घण्टा है, वहाँ जाता है / वहाँ जाकर बादलों के गर्जन के तुल्य एवं गंभीर एवं मधुरतम शब्द युक्त, एक योजन गोलाकार सुघोषा घण्टा को तीन बार बजाता है। . मेघसमूह के गर्जन की तरह गंभीर तथा अत्यन्त मधुर ध्वनि से युक्त, एक योजन वर्तु लाकार सुघोषा घण्टा के तीन बार बजाये जाने पर सौधर्म कल्प में एक कम बत्तीस लाख विमानों में एक कम बत्तीस लाख घण्टाएँ एक साथ तुमुल शब्द करने लगती हैं, बजने लगती हैं। सौधर्म कल्प के प्रासादों एवं विमानों के निष्कुट-गम्भीर प्रदेशों, कोनों में आपतित-पहुंचे तथा उनसे टकराये हुए शब्द-वर्गणा के पुद्गल लाखों घण्टा-प्रतिध्वनियों के रूप में समुत्थित होने लगते हैं--प्रकट होने लगते हैं। सौधर्म कल्प सुन्दर स्वरयुक्त घण्टानों की विपुल ध्वनि से संकुल-आपूर्ण हो जाता है / फलतः वहां निवास करने वाले बहुत से वैमानिक देव, देवियां जो रतिसुख में प्रसक्त-अत्यन्त आसक्त तथा नित्य प्रमत्त रहते हैं, वैषयिक सुख में मूच्छित रहते हैं, शीघ्र प्रतिबुद्ध होते हैं-जागरित होते हैं--- भोगमयी मोह-निद्रा से जागते हैं। घोषणा सुनने हेतु उनमें कुतूहल उत्पन्न होता है-वे तदर्थ उत्सुक होते हैं / उसे सुनने में वे कान लगा देते हैं, दत्तचित्त हो जाते हैं / जब घण्टा-ध्वनि निःशान्त-अत्यन्त मन्द, प्रशान्त–सर्वथा शान्त हो जाती है, तब शक की पदाति सेना का अधिपति हरिनिगमेषी देव स्थान-स्थान पर जोर-जोर से उद्घोषणा करता हुआ इस प्रकार कहता है सौधर्मकल्पवासी बहुत से देवो! देवियो ! आप सौधर्मकल्पपति का यह हितकर एवं सुखप्रद वचन सुनें-उमकी प्राज्ञा है, आप उन (देवेन्द्र, देवराज शक) के समक्ष उपस्थित हों। यह सुनकर उन देवों, देवियों के हृदय हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं। उनमें से कतिपय भगवान तीर्थकर के वन्दन-अभिवादन हेतु, कतिपय पूजन-अर्चन हेतु, कतिपय सत्कार-स्तवनादि द्वारा गुणकीर्तन हेतु, कतिपय सम्मान समादर-प्रदर्शन द्वारा मनःप्रसाद निवेदित करने हेतु, कतिपय दर्शन की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org