Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 359
________________ 298] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र चउरासोइ असीइ, बावत्तरि सत्तरी अ सट्ठी / पण्णा चत्तालीसा, तीसा वीसा दस सहस्सा // एए सामाणिप्राणं, बत्तीसट्ठावीसा बारसट्ठ चउरो सयसहस्सा। पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सारे / / आणय-पाणय-कप्पे चत्तारि सयाऽऽरणच्चुए तिणि / एए विमाणाणं इमे जाणविमाणकारी देवा, तं जहा पालय 1. पुप्फे य 2. सोमणसे 3. सिरिवच्छे अ४. णंदिप्रावते 5 / कामगमे 6. पीइगमे 7. मणोरमे 8. विमल 6. सव्वओ भद्दे 10 // सोहम्मगाणं, सणंकुमारगाणं, बंभलोअगाणं, महासुक्कयाणं, पाणयगाणं इंदाणं सुघोसा घण्टा, हरिणेगमेसी पायत्ताणीआहिवई, उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी, दाहिणपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए। ईसाणगाणं, माहिदलंतगसहस्सारअच्चुअगाण य इंदाण महाघोसा घण्टा, लहुपरक्कमो पायत्ताणीग्राहिवई, दक्खिणिल्ले णिज्जाणमग्गे, उत्तरपुरथिमिल्ले रइकरगपव्वए, परिसा णं जहा जोवाभिगमे। आयरक्खा सामाणिप्रचउग्गणा सन्वेसि, जाणविमाणा सव्वेसि जोअणसयसहस्सविस्थिण्णा, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सन्वेसि जोअणसहस्सिया, सक्कवज्जा मन्दरे समोसरंति (वंदंति, णमंसंति,) पज्जुवासंति ति। [151] उस काल, उस समय हाथ में त्रिशूल लिये, वृषभ पर सवार, सुरेन्द्र, उत्तरार्धलोकाधिपति, अट्ठाईस लाख विमानों का स्वामी, आकाश की ज्यों निर्मल वस्त्र धारण किये देवेन्द्र, देवराज ईशान मन्दर पर्वत पर समवसृत होता है- आता है / उसका अन्य सारा वर्णन सौधर्मेन्द्र शक के सदृश है / अन्तर इतना है-उनकी घण्टा का नाम महाघोषा है। उसके पदातिसेनाधिपति का नाम लघुपराक्रम है, विमानकारी देव का नाम पुष्पक है / उसका निर्याण-निर्गमन मार्ग दक्षिणवर्ती है, उत्तरपूर्ववर्ती रतिकर पर्वत है / वह भगवान् तीर्थकर को वन्दन करता है, नमस्कार करता है, उनकी पर्युपासना करता है। अच्युतेन्द्र पर्यन्त बाकी के इन्द्र भी इसी प्रकार आते हैं, उन सबका वर्णन पूर्वानुरूप है। इतना अन्तर है सौधर्मेन्द्र शक के चौरासी हजार, ईशानेन्द्र के अस्सी हजार, सनत्कुमारेन्द्र के बहत्तर हजार, माहेन्द्र के सत्तर हजार, ब्रह्मेन्द्र के साठ हजार, लान्तकेन्द्र के पचास हजार, शुक्रेन्द्र के चालीस हजार, सहस्रारेन्द्र के तीस हजार, प्रानत-प्राणत-कल्प-द्विकेन्द्र के-इन दो कल्पों के इन्द्र के बीस हजार तथा प्रारण-अच्युत-कल्प-द्विकेन्द्र के-इन दो कल्पों के इन्द्र के दश हजार सामानिक देव हैं। सौधर्मेन्द्र के बत्तीस लाख, ईशानेन्द्र के अट्ठाईस लाख, सनत्कुमारेन्द्र के बारह लाख, ब्रह्मलोकेन्द्र के चार लाख, लान्तकेन्द्र के पचास हजार, शुक्रेन्द्र के चालीस हजार, सहस्रारेन्द्र के छह हजार, आनत-प्राणत-इन दो कल्पों के चार सौ तथा आरण-अच्युत-इन दो कल्पों के इन्द्र के तीन सौ विमान होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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