Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 216] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र उन यमक नामक पर्वतों पर बहुत समतल एवं रमणीक भूमिभाग है। उस बहुत समतल, सुन्दर भूमिभाग के बीचों-बीच दो उत्तम प्रासाद हैं। वे प्रासाद 623 योजन ऊँचे हैं / 31 योजन 1 कोश लम्बे-चौड़े हैं। सम्बद्ध सामग्री युक्त सिंहासन पर्यन्त प्रासाद का वर्णन पूर्ववत् है / इन यमक देवों के 16000 आत्मरक्षक देव हैं / उनके 16000 उत्तम प्रासन-सिंहासन बतलाये गये हैं। भगवन् ! उन्हें यमक पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! उन (यमक) पर्वतों पर जहाँ तहाँ बहुत सी छोटी-छोटी बावड़ियों, पुष्करिणियों आदि में जो अनेक उत्पल, कमल आदि खिलते हैं, उनका आकार एवं आभा यमक पर्वतों के आकार तथा आभा के सदृश हैं / वहाँ यमक नामक दो परम ऋद्धिशाली देव निवास करते हैं। उनके चार हजार सामानिक देव हैं, (चार सपरिवार अग्रमहिषियाँ ----प्रधान देवियां हैं, तीन परिषदें हैं, सात सेनाएँ हैं, सात सेनापति-देव हैं, 16000 आत्मरक्षक देव हैं। उनके बीच वे अपने पूर्व प्राचरित, आत्मपराक्रमपूर्वक सदुपाजित शुभ, कल्याणमय कर्मों का अभीष्ट सुखमय फल-भोग करते हुए विहार करते हैं--रहते हैं।) गौतम ! इस कारण वे यमक पर्वत कहलाते हैं / अथवा उनका यह नाम शाश्वत रूप में चला आ रहा है। भगवन् ! यमक देवों की यमिका नामक राजधानियाँ कहाँ हैं ? गौतम ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत मन्दर पर्वत के उत्तर में अन्य जम्बूद्वीप में 12000 योजन अवगाहन करने पर जाने पर यमक देवों की यमिका नामक राजधानियाँ आती हैं। वे 12000 योजन लम्बी-चौड़ी हैं। उनकी परिधि कुछ अधिक 37648 योजन है। प्रत्येक राजधानी प्राकारपरकोटे से परिवेष्टित है—घिरी हुई है। वे प्राकार 373 योजन ऊँचे हैं। वे मूल में 123 योजन, मध्य में 6 योजन 1 कोश तथा ऊपर तीन योजन आधा कोश चौड़े हैं। वे मूल में विस्तीर्ण-चौड़े, वीच में संक्षिप्त--संकड़े तथा ऊपर तनुक-पतले हैं। वे बाहर से कोनों के अनुपलक्षित रहने के करण वृत्त-गोलाकार तथा भीतर से कोनों के उपलक्षित रहने से चौकोर प्रतीत होते हैं / वे सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं। वे नाना प्रकार के पंचरंगे रत्नों से निमित कपिशीर्षकों बन्दर के मस्तक के आकार के कंगूरों द्वारा सुशोभित हैं / वे कंगूरे प्राधा कोश ऊँचे तथा पाँच सौ धनुष मोटे हैं, सर्वरत्नमय हैं, उज्ज्व ल हैं। यमिका नामक राजधानियों के प्रत्येक पार्श्व में सवा सौ-सवा सौ द्वार हैं। वे द्वार 623 योजन ऊँचे हैं। 31 योजन 1 कोश चौड़े हैं। उनके प्रवेश-मार्ग भी उतने ही प्रमाण के हैं। उज्ज्वल, उत्तम स्वर्णमय स्तूपिका, द्वार, अष्ट मंगलक आदि से सम्बद्ध समस्त वक्तव्यता राजप्रश्नीय सूत्र में बिमान-वर्णन के अन्तर्गत आई वक्तव्यता के अनुरूप है। यमिका राजधानियों की चारों दिशाओं में पाँच-पाँच सौ योजन के व्यवधान से 1. अशोकवन, 2. सप्तपर्णवन, 3. चम्पकबन तथा 4. ग्राम्रवन-ये चार वन-खण्ड हैं। ये वन-खण्ड अधिक 12000 योजन लम्बे तथा 500 योजन चौड़े हैं। प्रत्येक वन-खण्ड प्राकार द्वारा परिवेष्टित है / वन-खण्ड, भूमि, उत्तम प्रासाद आदि पूर्व वणित के अनुरूप हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org