Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 258] [जम्बूद्वीपप्राप्तिसून उत्तरदिग्वर्ती भवन के पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम-वायव्य कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में सागरचित्र नामक कूट पर वज्रसेना नामक देवी निवास करती है। उत्तर में उसकी राजधानी है। उत्तरदिग्वर्ती भवन के पूर्व में, उत्तर-पूर्व-ईशान कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में वज्रकूट पर बलाहका नामक देवी निवास करती है / उसकी राजधानी उत्तर में है ? भगवन् ! नन्दन वन में बलकूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है / गौतम ! मन्दर पर्वत के उत्तर-पूर्व में—ईशान कोण में नन्दन वन के अन्तर्गत बलकूट नामक कट बतलाया गया है। उसका. उसकी राजधानी का प्रमाण, विस्तार हरिस्सहकूट एवं उसकी राजधानी के सदृश है। इतना अन्तर है-उसका अधिष्ठायक बल नामक देव है। उसकी राजधानी उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में है। सौमनस वन 134. कहि णं भन्ते ! मन्दरए पन्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णत्ते ? गोयमा ! णन्दणवणस्स बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागानो अद्धतेवढि जोअणसहस्साई उद्ध उप्पहत्ता एत्थ णं मन्दरे पब्वए सोमणसवणे णामं वणे पण्णते। पञ्चजोयणसयाई चक्कवाल विक्खम्भेणं, वट्टे, वलयाकारसंठाणसंठिए, जे णं मन्दरं पव्वयं सव्वओ समन्ता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठइ / चत्तारि जोअणसहस्साइं दुण्णि य बावत्तरे जोअणसए अट्ट य इक्कारसभाए जोमणस्स बाहि गिरिविक्खम्भेणं, तेरस जोमणसहस्साई पञ्च य एक्कारे जोअणसए छच्च इक्कारसभाए जोअणस्स बाहिं गिरिपरिरएणं, तिण्णि जोअणसहस्साई दुण्णि अ बावत्तरे जोश्रण-सए अट्ट य इक्कारसभाए जोयणस्स अंतो गिरिविक्खम्भेणं, दस जोअणसहस्साई तिणि अ अउणापण्णे जोअणसए तिणि अ इक्कारसभाए जोअणस्स अंतो गिरिपरिरएणति / से णं एगाए पउमवरवेइपाए एगेण य वसंडेणं सध्वनो समन्ता संपरिक्खित्ते वण्णो, किण्हे किण्होभासे जाव' प्रासयन्ति / एवं कडवज्जा सच्चेव णन्दणवणवत्तव्वया भाणियन्वा, तं चेव ओगाहिऊण जाव पासायव.सगा सक्कीसाणाणंति / [134] भगवन् ! मन्दर पर्वत पर सौमनस वन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नन्दनवन के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से 62500 योजन ऊपर जाने पर मन्दर पर्वत पर सौमनस नामक वन पाता है। वह चक्रवाल-विष्कम्भ की दृष्टि से पाँच सौ योजन विस्तीर्ण है, गोल है, वलय के आकार का है / वह मन्दर पर्वत को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है। वह पर्वत से बाहर 427216 योजन विस्तीर्ण है। पर्वत से बाहर उसकी परिधि १३५११योजन है। वह पर्वत के भीतरी भाग में 32726 योजन विस्तीर्ण है। पर्वत के भीतरी भाग से संलग्न उसकी परिधि 103463 योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है / विस्तृत वर्णन पूर्ववत् है / 1. देखे सूत्र संख्या 6 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org