Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ अक्षरकार] [247 परिधि के सब ओर से समान विस्तार की अपेक्षा से वह 500 योजन है, गोल है। उसका आकार वलय-कंकण के सदृश है, सघन नहीं है, मध्य में वलय की ज्यों शुषिर है-रिक्त (खाली) है / वह (नन्दन वन) मन्दर पर्वतों को चारों ओर से परिवेष्टित किये हुए है। नन्दन वन के बाहर मेरु पर्वत का विस्तार 9954 योजन है। नन्दन वन से बाहर उसकी परिधि कुछ अधिक 31476 योजन है। नन्दन वन के भीतर उसका विस्तार 8644 // योजन है। उसकी परिधि 28316 योजन है। वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है। वहाँ देव-देवियां आश्रय लेते हैं-इत्यादि सारा वर्णन पूर्वानुरूप है। मन्दर पर्वत के पूर्व में एक विशाल सिद्धायतन है। ऐसे चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं / विदिशाओं में--ईशान, आग्नेय आदि कोणों में पुष्करिणियां हैं, सिद्धायतन, पुष्करिणियां तथा उत्तम प्रासाद तथा शक्रेन्द्र, ईशानेन्द्र संबंधी वर्णन पूर्ववत् है / भगवन् ! नन्दन वन में कितने कट बतलाये गये हैं ? गौतम ! वहाँ नौ कूट बतलाये गये हैं 1. नन्दनवनकूट, 2. मन्दरकूट, 3. निषधकूट, 4. हिमवत्कूट, 5. रजतकट, 6. रुचककूट, 7. सागरचित्रकूट, 8. वज्रकूट तथा 6. बलकूट / भगवन् ! नन्दन वन में नन्दनवनकूट नामक कूट कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर पूर्व दिशावर्ती सिद्धायतन के उत्तर में, उत्तर-पूर्व-ईशान कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में नन्दन वन में नन्दनवनकूट नामक कूट बतलाया गया है। ये सभी कूट 500 योजन ऊँचे हैं। इनका विस्तृत वर्णन पूर्ववत् है। नन्दनवनकूट पर मेघंकरा नामक देवी निवास करती है। उसकी राजधानी उत्तर-पूर्व विदिशा में-ईशान कोण में है / और वर्णन पूर्वानुरूप है। इन दिशाओं के अन्तर्गत पूर्व दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, दक्षिण-पूर्व-आग्नेय कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में मन्दरकट पर पूर्व में मेघवती नामक राजधानी है। दक्षिण दिशावर्ती भवन के पूर्व में, दक्षिण-पूर्व-आग्नेय कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पश्चिम में निषधकूट पर सुमेधा नामक देवी है। दक्षिण में उसकी राजधानी है। दक्षिण दिशावर्ती भवन के पश्चिम में, दक्षिण-पश्चिम-नैऋत्य कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के पूर्व में हैमवतकूट पर हेममालिनी नामक देवी है। उसकी राजधानी दक्षिण में है। पश्चिम दिशावर्ती भवन के दक्षिण में, दक्षिण-पश्चिम-नैऋत्य कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के उत्तर में रजतकूट पर सुवत्सा नामक देवी रहती है / पश्चिम में उसकी राजधानी है / __ पश्चिमदिग्वर्ती भवन के उत्तर में, उत्तर-पश्चिम-वायव्य कोणवर्ती उत्तम प्रासाद के दक्षिण में रुचक नामक कूट पर वत्समित्रा नामक देवी निवास करती है। पश्चिम में उसकी राजभानी है। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org