Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्व बमस्कार [219 तत्तद् दिशाओं में देव-परिवारस्थापना, ऋद्धि-सम्पत्ति-देव-वैभव-नियोजना प्रादि यमक देवों का वर्णन-क्रम है। नीलवान् पर्वत से यमक पर्वतों का जितना अन्तर है, उतना ही यमक-द्रहों का अन्य द्रहों से अन्तर है। नीलवान् द्रह 106. कहि णं भन्ते ! उत्तरकुराए णीलबन्तद्दहे गाम बहे पण्णत्ते ? गोयमा ! जमगाणं दक्खिणिल्लाओ चरिमन्ताओ अट्ठसए चोत्तीसे चत्तारि प्रसत्तभाए जोप्रणस्स अबाहाए सीधाए महाणईए बहुमज्झदेसभाए एत्य णं णोलवन्तहहे णामं दहे पण्णत्ते / दाहिण-उत्तरायए, पाईण-पडीणवित्थिण्णे। जहेव पउमद्दहे तहेव वण्णओ णेअन्वो, णाणतं-दोहि पउमवरवेइब्राहिं दोहि य वणसंहिं संपरिक्खित्ते, णीलबन्ते णाम णागकुमारे देवे सेसं तं चेव णेप्रव्वं / णीलवन्तद्दहस्स पुब्वावरे पासे दस 2 जोप्रणाई अबाहाए एत्थ णं वीसं कंचणगपम्वया पण्णत्ता, एग जोयणसयं उद्धउच्चत्तेणं-- मूलंमि जोपणसयं, पण्णत्तरि जोधणाई मन्झमि / उवरितले कंचणगा, पण्णासं जोमणा हंति // 1 // मूलंमि तिणि सोले, सत्तत्तीसाइं दुण्णि मज्झमि / अट्ठावण्णं च सयं, उवरितले परिरो होइ // 2 // पढमिस्थ नीलवन्तो 1, बितिओ उत्तरकुरू 2, मुणेप्रव्यो / चंदद्दहोत्य तइनो 3, एरावय 4, मालवन्तो म 5 // 3 // एवं वण्णो अट्ठो पमाणं पलिओवमट्ठिइमा देवा। [106] भगवन् ! उत्तरकुरु में नीलवान् नामक द्रह कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिणी छोर से 834 3 योजन के अन्तराल पर शीता महानदी के ठीक बीच में नीलवान नामक द्रह बतलाया गया है। वह दक्षिण-उत्तर लम्बा एवं पूर्व-पश्चिम चौड़ा है / जैसा पद्मद्रह का वर्णन है, वैसा ही उसका है / केवल इतना अन्तर है-नीलवान् द्रह दो पद्मवरवेदिकाओं द्वारा तथा दो वनखण्डों द्वारा परिवेष्टित है / वहाँ नीलवान् नामक नागकुमार देव निवास करता है / अवशेष-वर्णन पूर्वानुरूप है / नीलवान् द्रह के पूर्वी पश्चिमी पार्श्व में दश-दश योजन के अन्तराल पर बीस काञ्चनक पर्वत हैं। वे सौ योजन ऊँचे हैं। काञ्चनक पर्वतों का विस्तार मूल में सो योजन, मध्य में पचहत्तर योजन तथा ऊपर पचास योजन है / उनकी परिधि मूल में 316 योजन, मध्य में 237 योजन तथा ऊपर 158 योजन है / पहला नीलवान, दूसरा उत्तरकुरु, तीसरा चन्द्र, चौथा ऐरावत तथा पाँचवां माल्यवान---- ये पांच द्रह हैं। अन्य द्रहों का प्रमाण, वर्णन नीलवान् द्रह के सदृश ग्राह्य है। उनमें एक पल्योपम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org