Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [253 है / वह सर्वरत्नमय है. स्वच्छ है, सुकोमल है। वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक बनखण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है / उसका विस्तृत वर्णन पूर्वानुरूप है / भगवन् ! मन्दर पर्वत पर कितने बन बतलाये गये हैं ? गौतम ! वहाँ चार वन बतलाये गये हैं---२. भद्रशाल वन, 2. नन्दन वन, 3. सौमनस वन तथा 4. पंडक वन / गौतम ! मन्दर पर्वत पर भद्रशाल वन नामक वन कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! मन्दर पर्वत पर उसके भूमिभाग पर भद्रशाल नामक बन बतलाया गया है। वह पर्व-पश्चिम लम्बा एवं उत्तर-दक्षिण चौडा है। वह सौमनस, विद्यत्प्रभ, गन्धमा नामक वक्षस्कार पर्वतों द्वारा शीता तथा शीतोदा नामक महानदियों द्वारा आठ भागों में विभक्त है। वह मन्दर पर्वत के पूर्व-पश्चिम बाईस-बाईस हजार योजन लम्बा है, उत्तर-दक्षिण अढ़ाई सौ-पढ़ाई सौ योजन चौड़ा है / वह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वन-खण्ड द्वारा चारों ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णन पूर्ववत् है। वह काले, नीले पत्तों से आच्छन्न है, वैसी आभा से युक्त है। देव-देवियां वहाँ अाश्रय लेते हैं, विश्राम लेते हैं-इत्यादि वर्णन पूर्वानुरूप है।। मन्दर पर्वत के पूर्व में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर एक विशाल सिद्धायतन प्राता है / वह पचास योजन लम्बा है, पच्चीस योजन चौड़ा है तथा छत्तीस योजन ऊँचा है / वह सैकड़ों खंभों पर टिका है / उसका वर्णन पूर्ववत् है / उस सिद्धायतन की तीन दिशाओं में तीन द्वार बतलाये गये हैं / वे द्वार आठ योजन ऊँचे तथा चार योजन चौड़े हैं। उनके प्रवेश मार्ग भी उतने ही हैं। उनके शिखर श्वेत हैं-उज्ज्वल हैं, उत्तम स्वर्ण निर्मित हैं / यहाँ से सम्बद्ध वनमाला, भूमिभाग आदि का सारा वर्णन पूर्वानुरूप है / उसके बीचोंबीच एक विशाल मणिपीठिका है। वह पाठ योजन लम्बी-चौड़ी है, चार योजन मोटी है, सर्वरत्नमय है, स्वच्छ है, उज्ज्वल है / उस मणिपीठिका के ऊपर देवच्छन्दक-देवासन है / वह पाठ योजन लम्बा-चौड़ा है / वह कुछ अधिक पाठ योजन ऊँचा है / जिनप्रतिमा, देवच्छन्दक, धूपदान आदि का वर्णन पूर्ववत् है। मन्दर पर्वत के दक्षिण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर वहाँ उस (मन्दर) की चारों दिशाओं में चार सिद्धायतन हैं / मन्दर पर्वत के उत्तर-पूर्व में-ईशान कोण में भद्रशाल वन में पचास योजन जाने पर पद्मा, पद्मप्रभा, कुमुदा तथा कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियां आती हैं। वे पचास योजन लम्बी, पच्चीस योजन चौड़ी तथा दश योजन जमीन में गहरी हैं / वहाँ पद्मवरवेदिका, वन-खण्ड तथा तोरण द्वार आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है / उन पुष्करिणियों के बीच में देवराज ईशानेन्द्र का उत्तम प्रासाद है / वह पाँच सौ योजन ऊँचा और अढ़ाई सौ योजन चौड़ा है / सम्बद्ध सामग्री सहित उस प्रासाद का विस्तृत वर्णन पूर्वानुरूप है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org