Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्य वक्षस्कार] [195 . से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ सद्दावई वट्टवेयद्धपव्वए 2 ? गोयमा ! सद्दावई वट्टवेअद्धपब्वए णं खुद्दा खुद्दिआसु वावीसु, (पोक्खरिणीसु, दोहिआसु, गुंजालिआसु, सरपंतिमासु, सरसरपंतिमासु, बिलपंतिमासु बहवे उप्पलाई, पउमाई, सद्दावइप्पभाई, सहावइवण्णाई सद्दावइवण्णाभाई, सद्दावई अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव' महाणुभावे पलिओवमटिइए परिवसइत्ति / से णं तत्थ चउण्हं सामाणिग्रासाहस्सोणं जाव रायहाणो मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणणं अण्णमि जंबुद्दीवे दीवे० / [24] भगवन् ! हैमवतक्षेत्र में शब्दापाती नामक वृत्तवैताढ्य पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! रोहिता महानदी के पश्चिम में, रोहितांशा महानदी के पूर्व में, हैमवत क्षेत्र के बीचोबीच शब्दापाती नामक वृत्त वैताढच पर्वत बतलाया गया है। वह एक हजार योजन ऊँचा है, अढाई सौ योजन भूमिगत है, सर्वत्र समतल है। उसकी प्राकृति पलंग जैसी है। उसकी लम्बाईचौड़ाई एक हजार योजन है। उसकी परिधि कुछ अधिक 3162 योजन है। वह सर्वरत्नमय है, है। वह एक पदमवरवेदिका तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से संपरित है। पदमवरवेदिका तथा वनखण्ड का वर्णन पूर्ववत् है। शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत पर बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग है / उस भूमिभाग के वीचोंबीच एक विशाल, उत्तम प्रामाद बतलाया गया है / वह 623 योजन ऊंचा है, 31 योजन 1 कोश लम्बा-चौड़ा है। सिंहासन पर्यन्त आगे का वर्णन पूर्ववत् है। भगवन् ! वह शब्दापाती वृत्तवैताढय पर्वत क्यों कहा जाता है ? गौतम ! शब्दापाती वृत्तवैताढ्य पर्वत पर छोटी-छोटी चौरस बावड़ियों, (गोलाकार पुष्करिणियों, बड़ी-बड़ी सीधी वापिकाओं, टेढ़ी-तिरछी वापिकाओं, पृथक्-पृथक् सरोवरों, एक दूसरे से संलग्न सरोवरों,) अनेकविध जलाशयों में बहुत से उत्पल हैं, पद्म हैं, जिनकी प्रभा, जिनका वर्ण शब्दापाती के सदृश है। इसके अतिरिक्त परम ऋद्धिशाली, प्रभावशालो, पल्योपम आयुष्ययुक्त शब्दातियाती नामक देव वहाँ निवास करता है / उसके चार हजार सामानिक देव हैं / उसकी राजधानी अन्य जम्बूद्वीप में मन्दर पर्वत के दक्षिण में है। विस्तृत वर्णन पूर्ववत् है / (इस कारण यह नाम पड़ा है, अथवा शाश्वत रूप में यह चला आ रहा है।) हैमवतवर्ष नामकरण का कारण 15. से केण8 णं भन्ते ! एवं वुच्चइ हेमवए वासे 2 ? गोयमा ! चुल्लहिमवन्तमहाहिमवन्तेहि वासहरपन्वएहि दुहओ समवगूढे णिच्चं हेमं दलइ, णिच्चं हेमं दलइत्ता णिच्चं हेमं पगासइ, हेमवए अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव' पलिओवमट्ठिइए परिवसइ, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ हेमवए वासे हेमवए वासे / 1. देखें सूत्र संख्या 14 2. देखे सूत्र संख्या 14 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org