Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 'चतुर्थ वक्षस्कार] [193 भगवन् ! वह चुल्ल हिमवान् कूट क्यों कहलाता है ? गोतम ! परम ऋद्धिशाली चुल्ल हिमवान् नामक देव वहाँ निवास करता है, इसलिए वह चुल्ल हिमवान् कूट कहा जाता है। भगवन् ! चुल्ल हिमवान् गिरिकुमार देव की चुल्ल हिमवन्ता नामक राजधानी कहाँ बतलाई गई है ? गौतम ! चुल्ल हिमवान् कट के दक्षिण में तिर्यक लोक में असंख्य द्वीपों, समुद्रों को पार कर अन्य जम्बुद्वीप में दक्षिण में बारह हजार योजन पार करने पर चुल्ल हिमवान् गिरिकुमार देव की चल्ल हिमवन्ता नामक राजधानी आती है। उसका पायाम-विस्तार बारह हजार योजन है। उसका विस्तृत वर्णन विजय-राजधानी के सदृश जानना चाहिए। बाकी के कटों का आयाम-विस्तार, परिधि, प्रासाद, देव, सिंहासन, तत्सम्बद्ध सामग्री, देवों एवं देवियों की राजधानियों आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। इन कटों में से चल्ल हिमवान, भरत, हैमवत तथा वैश्रवण कटों में देव निवास करते हैं और उनके अतिरिक्त अन्य कूटों में देवियाँ निवास करती हैं। भगवन् ! वह पर्वत चुल्ल हिमवान् वर्षधर किस कारण कहा जाता है ? गौतम ! महा हिमवान् वर्षधर पर्वत की अपेक्षा चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत पायामलम्बाई, उच्चत्व-ऊँचाई, उद्वेध - जमीन में गहराई, विष्कम्भ–विस्तार-चौड़ाई, तथा परिक्षेप---परिधि या घेरा-इनमें क्षुद्रतर, ह्रस्वतर तथा निम्नतर है न्यूनतर है, कम है। इसके अतिरिक्त वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्ययुक्त चुल्ल हिमवान् नामक देव निवास करता है, गौतम ! इस कारण वह चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत कहा जाता है। गौतम ! अथवा चुल्ल हिमवान् वर्षधर पर्वत—यह नाम शाश्वत कहा गया है, जो न कभी नष्ट हुअा, न कभी नष्ट होगा। हैमवत वर्ष 63. कहि णं भन्ते ! जम्बुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते ? गोयमा! महाहिमवन्तस्स वासहरपव्वयस्स दक्षिणणं, चुल्लाहमवन्तस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, पुरथिमलवणसमुहस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरथिमेणं एत्थ णं जम्बुद्दीवे दीवे हेमवए णामं वासे पण्णत्ते / पाइण-पडीणायए, उदीणदाहिणविच्छिण्णे, पलिअंकसंठाणसंठिए, दुहा लवणसमुदं पुढें, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुछे, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुढें। दोण्णि जोअणसहस्साई एगं च पंचुत्तरं जोअणसयं पंच य एगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्खंभेणं / ___ तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं छज्जोअणसहस्साई सत्त य पणवणे जोअणसए तिण्णि प्र एगणवीसइ भाए जोअणस्स आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं पाईणपडोणायया, दुहनो लवणसमुह पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चस्थिमिल्लाए (कोडीए पच्चथिमिल्लं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org