Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [जम्बूदीपप्रज्ञप्तिसूत्र श्राद्ध-पितृ-क्रिया, स्थालीपाक–लोकानुगत मृतक-क्रिया-विशेष तथा मृत-पिण्ड-निवेदन-मृत पुरुषों के लिए श्मशानभूमि में तीसरे दिन, नौवें दिन आदि पिंड-समर्पण-ये सब होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ये सब नहीं होते / वे मनुष्य आवाह, विवाह, यज्ञ, श्राद्ध, स्थालीपाक तथा मृत-पिंड-निवेदन से निरपेक्ष होते हैं / (11) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे इंदमहाइ वा, खंदमहाइ वा, णागमहाइ वा, जक्खमहाइ वा, भूअमहाइ वा, अगडमहाइ था, तडागमहाइ वा, दहमहाइ वा, गदीमहाइ वा, रुक्खमहाइ वा, पव्वयमहाइ वा, थूभमहाइ वा, चेइयमहाइ वा ? णो इण8 सम?, ववगय-महिमा णं ते मणुप्रा पण्णत्ता। (11) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में इन्द्रोत्सव, स्कन्दोत्सव कात्तिकेयोत्सव, नागोत्सव, यक्षोत्सव, कूपोत्सव, तडागोत्सव, द्रहोत्सव, नद्युत्सव, वृक्षोत्सव, पर्वतोत्सव, स्तुपोत्सव तथा चैत्योत्सव-ये सब होते हैं ? गौतम ! ये नहीं होते / वे मनुष्य उत्सवों से निरपेक्ष होते हैं। (12) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए गड-पेच्छाइ वा, गट्ट-पेच्छाइ वा, जल्ल-पेच्छाइ वा, मल्ल-पेच्छाइ वा, मुट्ठिअ-पेच्छाइ वा, वेलंबग-पेच्छाइ वा, कहग-पेच्छाइ वा, पवग-पेच्छाइ वा, लासग-पेच्छाइ वा? णो इण? सम?', ववगय-कोउहल्ला णं ते मणुा पण्णत्ता समणाउसो ! (12) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में नट-नाटक दिखाने वालों, नर्तक --नाचने वालों, जल्ल–कलाबाजों-रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वालों, मल्ल-पहलवानों, मौष्टिक-मुक्केबाजों, विडंबक-विदूषकों--मसखरों, कथक --कथा कहने वालों, प्लवक छलांग लगाने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करने वालों, लासक-बीर रस की गाथाएँ या रास गाने वालों के कौतुक-तमाशे देखने हेतु लोग एकत्र होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ऐसा नहीं होता / क्योंकि उन मनुष्यों के मन में कौतूहल देखने की उत्सुकता नहीं होती। (13) अस्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा, रहाइ वा, जाणाइ वा, जुग्गाइ वा, गिल्लीइ वा, थिल्लोइ वा, सीमाइ वा, संदमाणिमाइ वा? णो इण? सम8, पायचार-विहारा गं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउनो! (13) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में शकट–बैलगाड़ी, रथ, यान दूसरे वाहन, युग्य-पुरातनकालीन गोल्ल देश में सुप्रसिद्ध दो हाथ लम्बे चौड़े डोली जैसे यान, गिल्लि --दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली डोली, थिल्लि-दो घोड़ों या खच्चरों द्वारा खींची जाने वाली बग्घी, शिविका–पर्देदार पालखियाँ तथा स्यन्दमानिका-पुरुष-प्रमाण पालखियाँ—ये सब होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम ! ऐसा नहीं होता, क्योंकि वे मनुष्य पादचारविहारी–पैदल चलने की प्रवृत्ति वाले होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org